Indrajeet Singh  
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Joined 6 November 2017


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23 JUN 2020 AT 23:13

हमराह,हम-शजर,हमसफर तुम थे,
मुसाफिर का इकलौता सफर तुम थे।

अब्र हो बरसना फितरत है तुम्हारी,
मैं टूटी झोपड़ी,कोई कहर तुम थे।

साक़ी के लब़ों से कई जाम पिये हैं,
मयख़ाने बेअसर रहे इस कदर तुम थे।

मेरे दिल में जो था मुझतक ही रहा,
महज़ मुलाजिम थे हम,सदर तुम थे।

ये जो इस तरह महकता रहता हूँ मैं,
इल्म ना था बेइंतहा महर तुम थे।

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23 JUN 2020 AT 22:29

सत्ता की गुणवत्ता तय होनी चाहिए,
संगीत है अलबत्ता,लय होनी चाहिए।

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4 AUG 2018 AT 19:06

है हर बात जाहिर ख़ुद से फिर क्या छिपाते हो,
अँधेरे में ही मिलना है तो फिर क्या मुस्कुराते हो।

है ख़लिश तो अब वो ताउम्र ही रहेगी,
हाथों में नयी लकीरें क्या बनाते हो।

है इश्क़ किसी से,गुजरेगी किसी के साथ,
इस तरह जो निभाते हो तो क्या निभाते हो।

है इक अरसे से नही देखा आइना मैने,
ख़ुद के ना रहे जब,तुम क्या नज़रें चुराते हो।

है जो हो चुका देखो,उसपे ज़ोर किसका है,
याद कर अब हमें,मेरी ग़ज़ल क्या गुनगुनाते हो।

समंदर चाह का शायद कुछ कम ही रहा इन्द्रजीत,
हम तो जलते ही हैं ,तुम ख़ुद को क्या जलाते हो।

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1 AUG 2018 AT 9:49

उल्फ़त का सफर है,और जाना किधर है,
निगाहों में गर वो है,फिर निशाना किधर है।

क़ैफ़ियत मेरी क्या है,कोई क्या ही बयाँ करे,
मिलना हो जो मुझसे फिर ढूँढ़िये मयखाना किधर है।

शहर में कोई अंजान ढ़ूँढ़ता हूँ मैं अक्सर,
अपनों ने अपनों को पहचाना किधर है।

हाल-ए-दिल ख़त से बयाँ अब कोई करता नहीं,
जिस्म के आशिक हैं सब,रूह का दीवाना किधर है।

है कुछ ना कुछ जरूर मेरा वास्ता उससे,
ज़रा पागल हैं वो रहने दो,समझाना किधर है।

महफिल में अँधेरा है,तुम्हे ड़र तो नही लगता,
जुल्फों से कितने कत्ल हुएँ हैं,तहख़ाना किधर है।

मेरा दुश्मन है वो,फिर मेरी खैरियत भी ना पूँछे,
एेसे रिश्ते को हमे भी निभाना किधर है।

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25 JUL 2018 AT 21:29

हो इश्क़ मुकम्मल ना सही,अधूरी कहानी हो जाए,
तुम पढ़ने आती रहना,हर हर्फ़ जावेदानी हो जाए।

भूल जाते हैं अक्सर लोग,जमाने का यही दस्तूर है,
कुछ तुम रखलो कुछ हम,अनमोल निशानी हो जाए।

अगले पल क्या होना है खबर नही है कुछ मुझको,
ड़रता है दिल जब तो बस कोई बात पुरानी हो जाए।

रफ़ीक मेरे जो हैं वो मेरे दिल में रहते हैं,
दुश्मनी जो है तुमसे चलो फिर खानदानी हो जाए।

नही समझे हैं वो बात जो खामोशी में थी,
ना हो जाए देर सो इज़हारे इश्क़ मुँह जुबानी हो जाए।

जो दिल में आयी बात लब्जों में उतार दी,
ना जाने इन्द्रजीत ये कितनों की कहानी हो जाए।

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5 JUL 2018 AT 23:45

जिंदगी को समझना,फिर ख़ुद को समझाना,
मियाँ आसान कहाँ है,ख़ुद को बेवकूफ बनाना।

वो चाहता मुझसे क्या है,कहाँ मुझे जाना है,
सभी उलझे हैं यहाँ,सबका है इक सा फसाना।

ना हैरत मुझे थी,ना वो ही कुछ परेशान था,
इक अँधेरी रात और फिर इक सुबह का मुस्कुराना।

मैं ना ही ड़रता हूँ नाकाम होने से ना ड़रूँगा,
बहुत मुस्किल है माँ-बाप को उदास देखपाना।

हर लड़ाई है मेरी,बस अब खुदसे ही यहाँ,
ख़ुद को हराकर है ख़ुद से जीत जाना।

बारिश के दिन हैं,अज़ब सीे ये धूप है,
उनकी यादों में भीगकर है ख़ुद को जलाना।

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4 MAR 2018 AT 12:12

इश्क़ के मैदान के खिताब तुम बस इक दावेदार हम,
हमारी जरूरत थे तुम ,तुम्हारे लिए बेकार हम।

चन्द दिनों का ही रहा बस अपना ये सफर,
फिर वक्त हो गये तुम,और इंतजार हम।

शहर की हवाओं में जो़र आजमाइश लगी,
कभी टूटे ही नहीं तुम,हो गये हजार हम।

मजबूरी होगी क्या बस तभी आओगे,
सफेदपोश हो गये तुम,शहीद की मजार हम।

चलो एक बार फिर कहानी दोहराई जाये,
सड़क के इस पार तुम,उस पार हम।

उम्मीद सजा की थी,और मिलती भी कैसे नहीं,
निकले कोतवाल तुम,तय हो गये कसूरवार हम।




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3 MAR 2018 AT 8:19

कोई पन्ना फाड़ो और नाव बना दो,
कोई शहर तोड़ो और गाँव बना दो।

तुम्हारे घर में तुम्हे कोई हराने ना पाये,
नया एेसा कोई फिर दाव बना दो।

दर्द में तेरे मैं रोऊँ,मेरा दर्द तेरा हो जाये,
दुनिया की समझ से जो हो परे ऐसा कोई भाव बना दो।

काट दिये हैं शजर जो सारे,घर बनाने में,
बीज लगाकर पेड़ उगाकर नई फिर छाँव बना दो।

सास बहू से कहती है,घर सूना सूना लगता है,
आँगन में रौनक लाने को नन्हे-नन्हे पाँव बना दो।

ना जाने क्या ले जाना है,शहर में जो वापस आये हैं,
नज़रों को नज़रों से मिलाकर जख़्म को घाव बना दो।

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27 FEB 2018 AT 18:54

कहानी में फिर से कोई इतवार चाहता हूँ,
मैं बीमार अच्छा था,ख़ुद को बीमार चाहता हूँ।

उसके बाद कोई कीमत ही नही रही मेरी,
कोड़ियों के भाव ही सही मैं खरीददार चाहता हूँ।

कई टाँके लगे हैं जे़हन में,कई टुकड़े हुए हैं दिल के,
तुम छू लो आकर इकबार मैं होना ख़ुद  हजार चाहता हूँ।

वो जिस गली,जिस मोहल्ले से भी होकर गुजरें,
नज़र कोई छूने ना पाये,हर जगह पहरेदार चाहता हूँ।

कोई टूटा हुआ है,तो उसे और तोड़ा जाएगा,
तू जिसे तोड़े मैं वही दिल होना बार-बार चाहता हूँ।

मुझे नाकारा,निकम्मा ना जाने लोग क्या-क्या कहते हैं,
शेर जे़हन में छप जायें,होना इतना असरदार चाहता हूँ।

तुम्हे जो अच्छा लगे,वो मैने कभी कहाँ लिखा है,
भूल ना पाओ जिसे कोई ग़ज़ल बेकार चाहता हूँ।

आसमान से उतार लाओ और जमीं में दबा दो,
आशिकों की ख़ातिर चाँद तारों का कारोबार चाहता हूँ।

वक्त रूकता कहाँ हैं,और मैं कोई ख़ुदा थोड़े हूँ,
'इन्द्रजीत' सब याद रखें ऐसा किरदार चाहता हूँ।




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26 FEB 2018 AT 10:39

अहबाब मेरा मुझे आजमा कर देखता है,
गरीब हर इक ख़्वाब कमा कर  देखता है।

लगी है आग तो जलता कहाँ कौन है,
दहलता हूँ,जब वो मुझमे समा कर देखता है।

नदी के इस ओर में और उस ओर वो,
आग दरिया भी पानी जमा कर  देखता है।

जब मेरी बातों का नहीं होता कोई जवाब,
सो वो लबों को लबों में थमा कर देखता है।

दिन में भवरे की तरह मंड़राता है उसकी गलियों में,
रात में जुगनू बन चमचमा कर देखता है।

आदमी को जब नही मिलता दर्द से आराम,
आह में फिर नाम माँ,कर देखता है।

वो कहीं ख़ुदा तो नहीं हो गया है,
हुक्मरान हुक्म फरमा कर देखता है।

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