कहानी में फिर से कोई इतवार चाहता हूँ,
मैं बीमार अच्छा था,ख़ुद को बीमार चाहता हूँ।
उसके बाद कोई कीमत ही नही रही मेरी,
कोड़ियों के भाव ही सही मैं खरीददार चाहता हूँ।
कई टाँके लगे हैं जे़हन में,कई टुकड़े हुए हैं दिल के,
तुम छू लो आकर इकबार मैं होना ख़ुद हजार चाहता हूँ।
वो जिस गली,जिस मोहल्ले से भी होकर गुजरें,
नज़र कोई छूने ना पाये,हर जगह पहरेदार चाहता हूँ।
कोई टूटा हुआ है,तो उसे और तोड़ा जाएगा,
तू जिसे तोड़े मैं वही दिल होना बार-बार चाहता हूँ।
मुझे नाकारा,निकम्मा ना जाने लोग क्या-क्या कहते हैं,
शेर जे़हन में छप जायें,होना इतना असरदार चाहता हूँ।
तुम्हे जो अच्छा लगे,वो मैने कभी कहाँ लिखा है,
भूल ना पाओ जिसे कोई ग़ज़ल बेकार चाहता हूँ।
आसमान से उतार लाओ और जमीं में दबा दो,
आशिकों की ख़ातिर चाँद तारों का कारोबार चाहता हूँ।
वक्त रूकता कहाँ हैं,और मैं कोई ख़ुदा थोड़े हूँ,
'इन्द्रजीत' सब याद रखें ऐसा किरदार चाहता हूँ।
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