चलो कहीं दूर, गर्म हवाओं को बेदर्दी से।
बना लो आशियाना, किसी पेड़ की छांव में।
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अब किसी को खोने से डर नही लगता जनाब।
सचता हूं, कहीं खुद ना खो जाऊं शब्दों के जाल में।-
ये हावाओं की सरसराहट,
अब खिड़कियों से उलझने लगी।
ये खामोश रातें,
अब बातें करने लगीं।-
चल पड़ा मै करने सैर,
अपने दोस्तों के बगैर।
खयाली रास्तों में उनकी याद आ जाती,
कॉल करके उन से बात भी हो जाती।
कोई दिल्ली है, तो कोई मुंबई मे।
भाऊक है मेरा एक भाई दुबई मे।
सब बोले जी नहीं लगता अब तेरी याद मे।
दो आंसू लेकर लौट आया घर मै,
उन सबकी याद मे।
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बसंत आया कलियां खिलने लगी,
लालिमा भरी पत्तियां भी खूबसूरत लगने लगी।
धूप की पहली किरण पड़ते ही,
ओंस की बूंदों के साथ चमकने लगी।
वसंत ऋतु के आनंद लेते हुए,
पेड़ भी हरियाली भिखेरने लगा।
बारिस की बौछारें और हवा के झोंके से,
अब पत्तियां भी लड़ने लगी।
गर्म हवाओं की बेदर्दी और 40 का पारा,
अब पत्तियां भी सहने लगी।
कुछ मुरझा गई, कुछ पीली पड़ गई,
पारा कम हुआ तो कुछ गिर गई, कुछ रह गई।
देखते ही देखते सब हवाओं के साथ उड़ गई।
इंतजार है फिर आनंदमयी बसंत का।
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मै जिंदगी गिरवी रखूँगा,
तुम कीमत बताओ मुस्कान की।
तुम इश्क पकड़ कर लाओ,
मै खंजर तेज करूंगा।-
मैंने सुना कि घर पर मेरा इंतजार है।
ये एक हादसा है कि मै सफर में व्यस्त रहा।।-