Inder jit chauhan.   (Inder Jit chauhan.)
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Joined 10 April 2019


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Joined 10 April 2019
17 OCT 2021 AT 15:28

हम दोषी थे।।
लोगो के नजरों में।
अदालत में।।
हलचल बहुत तेज थी।
खामोश था मैं।।
उन वकीलों के सवाल पर।
भरी अदालत में।।
पत्रकारों की नजर हम पर आ कर टिकी थी।
जज साहेब ने इंसाफ किया।।
हमारी बेगुनाही का सबूत देखा और बेइजत बरी किया मुझे।
हम मुस्कराते हुए "कोर्ट" से घर जा रहा था।
रास्ते में रुक कर हमने कल का एक अखबार खरीदा।।
उसमे हमारा चहरा था उसके ऊपर "लाल" रंग में मुजरिम लिखा था।

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17 OCT 2021 AT 9:13

सरकारें इस कदर मेहरबान है बेरोजगारी पर।
लाचार बना कर रोजगार की वादे करते है आप से।।
करते है वादे ये आते जाते सरकारें।
मगर कमर तोड़ दी ये मौजूदा सरकार ने।।
इस दौर में हम भी निराश है परेशान है क्योंकि।।
हम भी सैकड़ों प्राइवेट दफ्तरों से गुजरे है नौकरी के तलास में।।
कमाल है ये जुमले की सरकारें।
"20 लाख" नौकरी देने के नाम पर "करोड़ों"
ठेले कसवा रहे है युवा से पकौड़ी थलवाने के वास्ते।।



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13 OCT 2021 AT 15:38

एक वक्त था जब हम उनसे मिलने को तरसते थे।
रातों में सोते नही थे आंखो में हजारों सपना सजाए लेटे थे।
और वक्त गुजारा ऐसे हम रोते रह गए वो हंस कर आगे निकल गए।

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6 MAR 2021 AT 0:50

ना रातवा निमन लागे।
ना दीनवा निक लागे।।

हई दिनवा ह फागुन के।
पूवा पकवानवा निक लागे।।

ना रोटी निमन लागे।
ना भातवा (चावल) निक लागे।।

हई दिनवा ह चईत के।
सातुवा निक लागे।।

ना हई शहर निमन लागे।
ना हई बिल्डिग निक लागे।।

ऊहे गवुवा (गांव) के।
टूटल मरईया (झोपड़ी) निक लागे।।




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31 OCT 2020 AT 22:27

तन्हाई है! खामोशी है ! दिल में दर्द के बाद भी लबों पे हंसी है!!

अकेले पन के कोने में दिल कहता है ! कोई दूर होने को चला है!!

दर्द का आलम ये है!
की दर्द में हैं यादें और यादों में है आँसू!!

वो भूल गई यादें जो संग बिताई थी ! कभी
वो मुलाकात अभी बाकी है! कहानी अधूरी पड़ी है!!

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23 JUL 2020 AT 0:47

अजीब कस में कस है "ज़िन्दगी"
जिसे छू नही सकते उसे महसूस करते है।।

जिनसे प्यार है उनसे दूर रहते है।।

आधी रात में वो टिमटिमाते तारे।
और ये मीठी सी चलती हवा
सच मे बहुत बेचैन करती है।।

लाजिम है ये हकीकत नही ,लेकिन,
काश ये रात हकीकत ना होता।।
तो कैसा होता।।

ये नीला आसमा जमी के बाहो में होता।
फ़कत बगीचे में फूलों और हवा का खुसबू कुछ और होता।

तारे भी कुछ यूं टिमटिमाते।।
और जमी का इरादा भी नेक ना होता।

न कोई दर्द ना कोई गिला होता।
काश एक ऐसी सुबह होता ।।

जमी के बाहो में लिपटा खुला आसमा होता।।




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28 JUN 2020 AT 16:37

हम कैसे जिए अपनी ज़िंदगी जब दिलों दिमाग में किसी और की यादे बसी हो!!

ऐसा नही है की हम उसे भूलना नही चाहते लेकिन
उसके और उसके यादों के सिवा कुछ अच्छा भी नही लागत!!

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23 FEB 2020 AT 12:25

आग से पूछ बारिश कैसी लगती है!!
इस जख्मी दिल को तेरी याद कैसी लगती है!
और मुस्कुराना किसे पसंद नहीं!!
इसी लिए सारे दर्द इन आंखो में छुपाए बैठे है!

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22 FEB 2020 AT 15:31

जैसा था!! वैसा छोर दिया!
हमने थोड़ा मामला बिगड़ता छोर दिया!!
लोग पूछ बैठे मेरे इस बर्बादी के कारण!
हमने खामोशी से इस दिल पे हाथ रख दिया!!

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19 FEB 2020 AT 14:50

क्या हुनर रखती हो!
पहले ही नजर में दिल को चुरा लेती हो!!

ये दिल का क्या कसूर!
तुम्हारा बाल इन पर कहर क्यों "ढा" रहे है!!

अब क्या कहे जब से तुम को देखा है!
खुद में खुद को अजनबी सा लग रहा हूं!! मैं

क्या हुनर रखती हो!
दिल को बेचैन कर राहों में देख मुस्कुराती हो!!

रातों का नींद चुरा के! खोवाबों में हुकूमत करती हो!
क्या हुनर रखती हो!
क्या हुनर रखती हो!!




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