इं रमेश वर्मा   (आर. सी. वर्मा)
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Joined 30 October 2019


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Joined 30 October 2019

“जो हुआ…वो हुआ भी नहीं,

यानी जो कुछ भी था…वो था भी नहीं।”

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लगाया इश्क का पौधा जो हम तुमने,
साजिशें लाख हुयी उसे मिटाने की...!

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चमक जायेगे गर सब,
तो फिर मेहनत का क्या होगा..!!

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छू न पाऊं उसे, फिर भी जी भर कर देखने मैं
हर्ज क्या हैं ..!!
माना मैं कहानी नहीं हूँ तेरी
पर एक खुबसुरत लम्हा बनने में हर्ज क्या है.!!

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यार तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी,
.... कि तुम याद आ गए

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सब उम्मीदें टूट गई तो
आशाऐं भी रूठ गई तो
दुख ने आकर घेर लिया था
सबने ही मुँह फेर लिया
मैंने ऐसे दुर्दम क्षण में
विपदाओं के भीषण रण में
कैसे अपना आप संभाला
पीड़ाओं का शाप संभाला
पूछो मेरे व्याकुल मन से
प्राण नहीं निकले बस तन से।
सबने रंग दिखाये अपने
कैसे तोड़े मेरे सपने
मेरा हँसना लील गये वो
मन रौंदा तन छील गये वो
ढूँढ़ ढूँढ़ कर दोष निकाले
अँधियारों ने छले उजाले
मैं चुप था वो बोल रहे थे
जैसे ख़ुद को खोल रहे थे
कानन के शिकवे उपवन से
प्राण नहीं निकले बस तन से।
झुकते झुकते टूट रहे थे
सबसे पीछे छूट रहे थे
अच्छाई का मान नहीं था
हम पर उनका ध्यान नहीं था
हमें न भाई दुनियादारी
साथ लिये केवल ख़ुद्दारी
आख़िर थक कर बैठ गये हम
ख़ुद के भीतर पैठ गये हम
कितना डरते परिवर्तन से
प्राण नहीं निकले बस तन से।

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नजर भी कमाल होती है,
देख ले तो घायल, ना देखे तो पागल,
कर देती है..!

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तेरा ऊचाँई पर जाना, अच्छा लगता है मुझे,
पर तेरे छूट जाने की कमी खलती रहेगी ...!

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अब मेरे कमरे में तेरी तस्वीर नही मिलेंगी,
क्योकि तेरे आशिक ने महबूब बदल लिया..!!
#upsc

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पिघलता रहा रात भर कतरा कतरा मैं,
पर आँखो के इरादो ने मुझे बुझने ना दिया...!

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