Ila Joshi   (Ila)
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इतना कुछ है कहने, सुनने और सुनाने को कि सफ़े कम पड़ने लगें और स्याही कलम से बहती चली जाए
Joined 19 December 2017


इतना कुछ है कहने, सुनने और सुनाने को कि सफ़े कम पड़ने लगें और स्याही कलम से बहती चली जाए
Joined 19 December 2017
20 NOV 2020 AT 20:44

प्रेम के नाम पर
मुँह बिचकाते लोग देखे हैं?
उन्हें देखने के बाद
मेरा प्रेम में विश्वास और बढ़ जाता है
कि देखो इनसे भी किसी न किसी ने
प्रेम किया ही होगा

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17 NOV 2020 AT 22:24

'काश',
इस लफ़्ज़ को
किसी की भी ज़िन्दगी में
नहीं होना चाहिए

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11 SEP 2020 AT 21:38

मैं गुल्लक में पैसे नहीं
उम्मीदें भरती हूँ
कि अब जानती हूँ कई मुश्किलों में
पैसे से ज़्यादा उम्मीद की ज़रूरत होती है

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29 AUG 2020 AT 9:43

मिट्टी की ख़ुशबू आने के लिए
मिट्टी का होना ज़रूरी है
कंक्रीट के कैनवास पर
कुदरत के रंग असली नहीं लगते

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23 AUG 2020 AT 17:28

प्रेम,
एक उफ़नती नदी की गहराई में छिपे
उस पत्थर की तरह है
जो सबसे सुंदर है, मगर
आसानी से मिलना नहीं चाहता

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13 APR 2020 AT 18:11

मैं अधूरेपन पर एक नज़्म कहूँगी
तुम समझोगे मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
फिर मैं एक नज़्म कहूँगी मोहब्बत पर
और तुम दिल ही दिल में मान लेना
कि तुम्हारे साथ धोखा हुआ है

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11 MAR 2020 AT 22:42

मोहब्बत का रंग जिस्म पर नहीं
तुम्हारी रूह पर लगा है
जिसे सिर्फ़ आँखों का आब छू सकता है

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12 FEB 2020 AT 11:00

अफ़साने कहने वाले
जीते रहे ग़ज़लों और नज़्मों की दुनिया में
वो ढूँढते थे किरदार मोहब्बत, जुदाई और मौत में

काश कोई उन्हें बता पाता
कि उस ग़ज़ल का सबसे मुक्कमल शेर
किसी ने अपने मरने से पहले
उनके लिए कहा था

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4 DEC 2018 AT 18:15

क्या कभी इमारतों के बीच बसे
शहर देख पाते हैं हम?
या देख पाते हैं वो आसमान
जो टुकड़ा टुकड़ा बरसता है शहर पर?

हमको आदत हो गई है टुकड़ों में जीने की
या पूरा होने जैसा कोई सच ही नहीं है?

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27 NOV 2018 AT 21:57

मैं किसी
ब्लैक एंड वाइट पेंटिंग में
रंग भरना चाहती हूं
कि जान सकूं वो पहलू भी
जो बिना रंग दिखाई नहीं देते

तुम हंस देते हो
कि भूरा रंग भरे बैठी हो
अपनी आंखों में, फिर कैसे
सब ब्लैक एंड वाइट हो गया?

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