प्रेम के नाम परमुँह बिचकाते लोग देखे हैं?उन्हें देखने के बादमेरा प्रेम में विश्वास और बढ़ जाता हैकि देखो इनसे भी किसी न किसी नेप्रेम किया ही होगा -
प्रेम के नाम परमुँह बिचकाते लोग देखे हैं?उन्हें देखने के बादमेरा प्रेम में विश्वास और बढ़ जाता हैकि देखो इनसे भी किसी न किसी नेप्रेम किया ही होगा
-
'काश', इस लफ़्ज़ कोकिसी की भी ज़िन्दगी मेंनहीं होना चाहिए -
'काश', इस लफ़्ज़ कोकिसी की भी ज़िन्दगी मेंनहीं होना चाहिए
मैं गुल्लक में पैसे नहींउम्मीदें भरती हूँकि अब जानती हूँ कई मुश्किलों मेंपैसे से ज़्यादा उम्मीद की ज़रूरत होती है -
मैं गुल्लक में पैसे नहींउम्मीदें भरती हूँकि अब जानती हूँ कई मुश्किलों मेंपैसे से ज़्यादा उम्मीद की ज़रूरत होती है
मिट्टी की ख़ुशबू आने के लिएमिट्टी का होना ज़रूरी हैकंक्रीट के कैनवास परकुदरत के रंग असली नहीं लगते -
मिट्टी की ख़ुशबू आने के लिएमिट्टी का होना ज़रूरी हैकंक्रीट के कैनवास परकुदरत के रंग असली नहीं लगते
प्रेम,एक उफ़नती नदी की गहराई में छिपे उस पत्थर की तरह हैजो सबसे सुंदर है, मगरआसानी से मिलना नहीं चाहता -
प्रेम,एक उफ़नती नदी की गहराई में छिपे उस पत्थर की तरह हैजो सबसे सुंदर है, मगरआसानी से मिलना नहीं चाहता
मैं अधूरेपन पर एक नज़्म कहूँगीतुम समझोगे मुझे तुम्हारी ज़रूरत हैफिर मैं एक नज़्म कहूँगी मोहब्बत परऔर तुम दिल ही दिल में मान लेनाकि तुम्हारे साथ धोखा हुआ है -
मैं अधूरेपन पर एक नज़्म कहूँगीतुम समझोगे मुझे तुम्हारी ज़रूरत हैफिर मैं एक नज़्म कहूँगी मोहब्बत परऔर तुम दिल ही दिल में मान लेनाकि तुम्हारे साथ धोखा हुआ है
मोहब्बत का रंग जिस्म पर नहींतुम्हारी रूह पर लगा हैजिसे सिर्फ़ आँखों का आब छू सकता है -
मोहब्बत का रंग जिस्म पर नहींतुम्हारी रूह पर लगा हैजिसे सिर्फ़ आँखों का आब छू सकता है
अफ़साने कहने वालेजीते रहे ग़ज़लों और नज़्मों की दुनिया मेंवो ढूँढते थे किरदार मोहब्बत, जुदाई और मौत मेंकाश कोई उन्हें बता पाताकि उस ग़ज़ल का सबसे मुक्कमल शेरकिसी ने अपने मरने से पहलेउनके लिए कहा था -
अफ़साने कहने वालेजीते रहे ग़ज़लों और नज़्मों की दुनिया मेंवो ढूँढते थे किरदार मोहब्बत, जुदाई और मौत मेंकाश कोई उन्हें बता पाताकि उस ग़ज़ल का सबसे मुक्कमल शेरकिसी ने अपने मरने से पहलेउनके लिए कहा था
क्या कभी इमारतों के बीच बसेशहर देख पाते हैं हम?या देख पाते हैं वो आसमानजो टुकड़ा टुकड़ा बरसता है शहर पर?हमको आदत हो गई है टुकड़ों में जीने कीया पूरा होने जैसा कोई सच ही नहीं है? -
क्या कभी इमारतों के बीच बसेशहर देख पाते हैं हम?या देख पाते हैं वो आसमानजो टुकड़ा टुकड़ा बरसता है शहर पर?हमको आदत हो गई है टुकड़ों में जीने कीया पूरा होने जैसा कोई सच ही नहीं है?
मैं किसीब्लैक एंड वाइट पेंटिंग मेंरंग भरना चाहती हूंकि जान सकूं वो पहलू भीजो बिना रंग दिखाई नहीं देतेतुम हंस देते होकि भूरा रंग भरे बैठी हो अपनी आंखों में, फिर कैसेसब ब्लैक एंड वाइट हो गया? -
मैं किसीब्लैक एंड वाइट पेंटिंग मेंरंग भरना चाहती हूंकि जान सकूं वो पहलू भीजो बिना रंग दिखाई नहीं देतेतुम हंस देते होकि भूरा रंग भरे बैठी हो अपनी आंखों में, फिर कैसेसब ब्लैक एंड वाइट हो गया?