सोचता तो हूं,हजार ख्वाईशे लिखूंगा
मगर हर बार मेरा कलाम अधूरा रह जाता है
कि इन नश्तर निगाहों से जो तुम देखते हो
जुबान पर आकर भी सलाम अधूरा रह जाता है-
अक्सर ये हवा ही मुजरिम हुई बारिश के लिए
बदनाम कभी , हवा के साथ उड़ता ...बादल न हुआ
जिनके मोहब्बत में जनाजे उठ गए, वो फासनो में मिले
पूछा न गया वो,इश्क कर के जो इश्क में पागल न हुआ
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उसके होटों पे रंग लाल , जचता तो नही है
वो मेरी तो सुनती नही, सच कोई और कहता ही नहीं
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शर-ए-आम तो तेरा नाम ले नहीं सकता न...
तो मेरी हर नज़्म में तेरा किरदार 'मेरी चाय' है-
नहीं जाना मुझे शिमला - मसूरी, नहीं देखना दिलकश नज़ारा
गिरती बर्फ देखने के लिए यार बर्फीली हवाओं से नही टकराना
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काफी वालो को भी,सर्दियां आई तो याद चाय आ गई
चलो माना की चाय दिलरुबा है, तुम तो बेवफा हुए न-
Snapchat is like
भईया! यहां तो सबसे ही हमारा नाता है
सुबह से शाम तक भर - भर के स्ट्रीक आता है
स्ट्रीक पड़ी रहती है, बिना पते का तार हो जैसे
इन्हे open करने की जहमत कोई नहीं उठता है-
If somebody doing marketing like this... then better that it goes shut down.
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ख्वाइशें बहुत सारी हैं,हर किसी को सब तो नहीं बता के रखता हूं
तुम्हारे लिए ही लिखता हूं हर रोज और तुम ही से छुपा के रखता हूं
मैं चुप ही न बैठुं एक पल को भी शायद,इतना कुछ कहना है तुझे
समंदर का शोर न सही मुझमें,गहराइयों में राज मैं भी दबा के रखता हूं
तुम खूबसूरत हो, तुम जानशीं हो,तुम सबसे हसीं हो,ये कहना भी है
मगर वही चार लोग का डर,और मैं उसी डर से खुद को डरा के रखता हूं
बड़े इत्मीनान से बैठता हूं मैं रोज इस उम्मीद में की लिखूंगा आज तुझे
इश्क,जुनून,दीवानगी लिखता हूं,और आखिर में खत, जला के रखता हूं
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माफ करना,पर सच है कि तुम इस दफा भी गलत हो
तुम्हारी तय की गई उम्र से ज्यादा जी गया इश्क मेरा
न धुंधलाई है कोई याद उन हसीन लम्हों की, जान
न मैं भूला तुम्हे,न फीका पड़ा तुझसे ये, इश्क मेरा
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