जिसे माना था अपना, वह निकली बेहद एक सपना,
पल भर में जैसे टूट कर बिखर गई, भूल गई हर बातों को,
याद तक नहीं रहा उसे बिताई हुई हमारी ख्वाबों को,
जिसे माना था कभी अपना, आज वह सजी है किसी और की अमानत, हम बस रह गए यहां ठोकर खाते, तिलमिलाते, तड़पते हुए, सिसक सिसक कर रोते रहते और बस बितानी को जो है उस, जिंदगी की अमानत को, निभानी जो है उस हसीन दास्तान को, अकेलेपन में, दूरियों की ग़म में, और बेवफ़ाई की नम में।
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