कई मुद्दतों के बाद किसी के आगे तुम्हारा जिकृ आया,
बातें तो बहुत कि तुम्हारी लेकिन मैंने नाम नहीं बताया
कई पुराने किस्से सुनाऐ तुम्हारे हमारे साथ के,
वो हल्की सर्द वाले दिनों के वो रिम झिम बरसात के,
कुछ चुटकुले भी बताते तुम्हारी उन बचपने वाली बात के,
कुछ हंसते कुछ डराते उस तिखे मिठे अहसास के,
फिर जो चर्चा आगे चली तो मिलाया तुम्हारे अंदाज,
छोड़ ना जाने दें देंख लेने वाले जिन्दा दिली के विश्वास से,
फिर कहानी में जिकृ आया तुम्हारे लड़ाकू अंदाज का,
कुछ पुरानी चोट का कुछ हाथों कि पुरानी मार का,
बस यही सब बातें करते करते मन बेचैन हो उठा गला मैर भर आया,
बातें करते करते खत्म हो गई लेकिन मैंने नाम नहीं बताया........-
इन कम्बक्ख्त बेगैरत रातों को वो मुझसे दूर हो जाती है,
मैं उसको खोजने जाता हूँ उसकी याद मुझे मिल जाती है,
सुनसान सायानी रातों में वो आवाज़ देकर मुझे बुलाती है,
नींद की चादर खींच कर अपने पीछे दौड़ता है,
जो पकड़ ना पाऊ उसे तो हंस कर मुझे चिढ़ाती है,
जो मैं भटकता गली गली हर मोड़ पर जाती सी नजर आती है,
जो मैं देखूं पता उसका हर झरोखी उसकी हो जाती है,
जो मैं खोजू उसकी आवाज हर घर की, सी वो नजर आती है,
जो मैं पूछूं उसकी खुशबू , हर कली उसके बारे में बतातीं है,
यूही ही भटकते भटकते सारी मेरी रात गुजर जाती है......
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समय के परे जो बातें थी, चंद लफ़्ज़ों में सिमट गई,
मुस्कुरायी थी जो आंखे नजर भर से, वो सवालो में है घिरी,
रोज-मडरा कि बातें, जब किससे बनने लगी,
ऊगलियाँ के उन फसलों पर, जब खामोशियाँ टकरा गई,
अन-चाहे कुछ फैसले, आगौस में जब घुल गए,
पल दौ पल का अकेला पन, बेरूखी का हम दम बन गया,
चुटकी भर नाराजगी को, गुमराही सा हम सफर मिला,
मनमर्जीयां जब मजबूरीयों कि खिदमतगार बनी,
थकी हारी उदासी को जब नाकामीयाबी ने लगे से लगाया,
सिकन भरि रातों को जब अंधेरे का ख्वाबगाह मिला,
रिश्तों कि तिजोरी को जब मतलब के चोरो ने लुट लिया,
कुछ ऐसे मिलता जुलता अनदाज जबानी का सफर बन गया.......-
एक तस्वीर कि आंखे में बना रहा हूँ,
चहरे कि तिशनगी तुम समझ लेना,
अनकही है कुछ बातें ,
जिनहें तुम आंखों में पड़ लेना,
आंखों में काजल मैं लगा रहा हूँ,
गहराई काजल कि तुम तय कर लेना,
आईना के साबाब से,
रंग आंखों का तुम चुन लेना,
झुकी, तिरछी , तेज या नटखट
ईशारे उन आंखों में तुम बुन लेना,
एक तस्वीर कि आंखे में बना रहा हूँ,
चहरे कि तिशनगी तुम समझ लेना......
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मेरा यार मुझसे रूठा है
खुद से साथ मेरा छुटा है,
मैं मागता हु दुआ उसकी आवाज सुनने कि
मगर कमबख्त मेरा नसीब बड़ा फुटा है,-
ए- खुद अब तु ही मेरा इंसाफ कर
या तो मेरा यार मुझे लोटा दे
नहीं तो इस मोहब्बत का हिसाब कर.......-
इबादत कि भी एक हद होती है
मैनें उस हद को भी तोड़ दिया मोहब्बत में,
तुम पुछाती हो अपने रब को
मेरे रब सब कुछ जानता है,
है मुमकिन किसी को चाहना इस कदर
दुआ कि कोई गहराई नहीं होती,
मैंने आपना समझकर उसको राज बताये थे
वो दुनिया कि तरह सब कुछ मिटा गया,-
ऐ मेरे मोला अब ये जिंदगी सुकून नहीं देती,
तेरी इबादत एक जरिया है जिने का मेरे,
सुबह शाम तेरी चोखट पर बैठ कर,
तेरा सजदा सुखन-ऐ- चरागाही है.....-