Hrushikesh Kshirsagar   (ऋषिकेश क्षिरसागर 'अबीर')
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Joined 10 June 2020


Joined 10 June 2020
27 JUN AT 10:23

ज्यावेळी कर्म, भक्ती, श्रद्धा, विश्वास, अध्यात्म हे सर्व थकलं,
सुरु झाल एक नवं थोतांड

अंधश्रद्धा, हात, पत्रिका, भविष्य, ग्रह, तारे, कोंबडी, बोकड,
लिंबू-मिर्ची आणि करणी कांड

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27 JUN AT 0:02

एक दिन आपका वक्त जरूर आयेगा
लेकिन उसके पहले आपका कई सारा वक्त जायेगा

और उस वक्त में आपको खुदको बचा कर रखना पड़ेगा
क्यों की यहीं वक्त की मांग है

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25 JUN AT 18:12

कैसी ये प्यास जो बुजती नहीं कभी
दरिया पे राज करने वाला प्यासा मिला

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22 JUN AT 13:44

हमसे हम,हमरा घर परिवार, काम,
दोस्त, रिश्ते नहीं संभल रहे है

और कितने ताज्जुब की बात है
हम दुनिया भर की 'समझदारी' ओढ़ कर चलते है

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21 JUN AT 22:49

मैंने अपना खेत देखा
खेत में धूप देखी
धूप में खडा पेड़ देखा
काम करके थके हुए मां-बाप को
उस पेड़ की छाव में बैठे हुए देखा

और फिर मुझे मेरी जिंदगी आसान लगी

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21 JUN AT 20:39

क्या था खयाल कैसी मदहोशी
तू खुदके काम ना आया ऋषि

लाखों का हुजूम कई है असीब
फिर भी तनाहा खामोश ऋषि

कितने सवाल कितनी उलझने
तू कितना सोचेगा हर बार ऋषि

कभी तो कह हाल-ए-दिल अपना
कभ तक तू बस सुनेगा ऋषि

कितनी बची है अब और जिंदगी
अब तो जीना सिख ऋषि

एक दिन होगा फ़ना जरूर
तू कब तक बचाता फिरेगा ऋषि

किसने रोका है अब तक तुझे
तू ही तेरा है दुश्मन ऋषि

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20 JUN AT 21:40

देखा तो जिंदगी है चार दिन
एक ख़ुशी बाकी गम है तीन

क्यों करें यहाँ फिर वादा कोई
जब जिंदगी का नहीं कोई यकीन

तरसते है रोज सच कहने वाले
आबाद होते है हर रोज माइन

यहीं ख्वाब यहीं जुस्तजू है
मरने से पहले होना मुतमईन

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17 JUN AT 19:40

ये खयाल आया जेहन में मेरे
ख़त्म होने पर बोतल पूरी

इंसान ने शराब बनाई
इंसान बुरा या फिर शराब बुरी

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17 JUN AT 16:49

जो असीब है वहीं रकीब है
मेरे सारे दुश्मन मेरे करीब है

सच है और अजीब है
तू गलत नहीं बस तू गरीब है

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17 JUN AT 15:58

और मैं अब एक उलझन में पडा हूँ
मैं उसे 'बड़ा' कहने वाला था
उतने में उसने कहां
मैं 'बड़ा' हूँ

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