है विधान ये राष्ट्र शक्ति का,
है विधान ये शौर्य भक्ति का,
जन जन के स्नेह युक्ति का,
बंध धरा के सिद्धि मुक्ति का,
संविधान ये जग प्रशस्ति का,,,,,,,-
मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले
आखों में सरयू का जल है,
मन अब मोहक मुग्ध हुआ है,
ये कैसी एक गूंज उठी है,
ये कैसा दिन आज खिला है,
घट घट है झंकृत और गुंजित ,
तुंग शिखर भी फहर रहा है,
शंख नाद से जग अनुनादित,
मन आह्लादित राम मिले है,
नयन भिराम प्रनाम करूं शत,
कोटि असंख्य विराम मिला है,
राम राम श्री राम ,,,,,,,,,,,,,,
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नए साल का पहला दिन भी, क्या चाहत लाता है,
कुछ जिंदादिली से जीने की नजाकत सिखाता है,
संकल्पित मन को एक नई शपथ दिलाता है,
जिंदगी में कुछ नया करने का एहसास जागता है,
नए साल का पहला दिन भी,,,,,,,,,
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किरदार हमारा तय रखना,
आधार हमारा तय रखना,
पहले से नाव क्यों टूटी दी,
किस ओर किनारा तय रखना,
है मन में भ्रम और भय पसरा,
क्या अंत हमारा तय रखना,
हसने का हुनर पुराना है,
आंखों में नज़ारा तय रखना,
किरदार हमारा,,,,,-
"दरमियान दर्द को दबाए ना रखो,
कुछ तो बोलो आंसुओं को छुपाए ना रखो"।
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सब तय है दोस्त,
इशारे उसके है,
हम तुम कुछ भी नहीं,
सहारे उसके है,
बीच में डूबे है सभी,
किनारे उसके है,
दिन खुशी में बीते, या
रात गम में जागे,
कुछ बचा नहीं दोस्त,
नज़ारे उसके है,
सब तय है,,,,,,,,।-
शुभ अमृत आशीर्वाद मिले,
प्रभु राम तुम्हारा साथ मिले,
मर्यादित मन क्रम वचन रहे,
जय शोभित धवल प्रकाश रहे,
श्री राम कृपा का वरद हस्त,
ज्योति सा पुंज प्रकाश रहे,
हो त्याग सौम्य मुख पंकज सा,
हर मन में राम निवास रहे,
मुख स्वर सरिता गुंजित हो,
जय जय श्री राम ही राम रहे,,,,-
"त्राहिमाम करुणा कृत वंदन,
त्राहिमाम शत शत अभिनन्दन,
कृपा कोटि कर हर्षित वर्धनी,
दुख भय तर्पित रोग वी मर्दिनी,
त्राहिमाम नव दुर्ग स्वरूपा,
मातृ चरण तुम दिव्य प्रारूपा"
नमो देव्यै महा देव्यै
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नारी का जीवन सार लिखूं,
या धैर्य धरा अंबार लिखूं,
ममता का सरस प्रमाण लिखूं ,
या करुण प्रेम भव पार लिखूं,
किस रूप में मै संसार लिखूं,,,
सावित्री का संकल्प लिखूं,
या सीता का संघर्ष लिखूं,
राधा का त्याग महान लिखूं,
या मीरा के विष का पान लिखूं,
काली का क्रुद्ध विलाप लिखूं,
या शक्ति स्वरूप प्रताप लिखूं,
हर रूप में मै तप त्याग लिखूं
कैसे मैं निश्चल जाप लिखूं।-
वो धुधला ही सही कुछ कुछ अपना पराया सा था,
वो हजारों की भीड़ में कुछ आजमाया सा था,
उसको पढ़ने का हुनर मुझको ना आ पाया,
कहीं किसी पन्ने में कुछ तो झिलमिलाया सा था।
आंखो से देखा तो कुछ भी नजर ना आया,
दिल में उतरा तो देखा सब डूबा डुबाया सा था,
वो ,,,,,
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