साफ नज़र से देखने के लिए,
सिर्फ चश्मा ही नहीं,
नज़रिया भी साफ रखना पड़ता है!-
एक साथ चलते-चलते,
जब कोई पीछे छूट जाता है,
सब उसको भूलकर,
आगे बढ़ने में व्यस्त रहते हैं,
मुझे दो कदम चल लेने के बाद,
जब किसी के रह जाने का
एहसास होता है,
मैं रुक कर उसके आने तक का
इंतज़ार करता हूँ,
उसके आने के बाद ही,
सफर दोबारा शुरू करता हूँ,
और धीरे-धीरे बाकी सब तक
हम फिर से पहुँच जाते हैं!
इस बार लेकिन पीछे,
मैं छूट जाता हूँ,
और किसी से तो नहीं,
बस उस छूटे हुए से उम्मीद रखता हूँ,
शायद मेरे लिए वो रुका होगा,
पर पता नहीं क्यों,
ये भूल जाता हूँ,
कि
सबका साथ मिलने के बाद,
मुझे याद ही कौन करेगा!-
मुझे पता ही नहीं,
मैंने चाहा क्यों तुम्हें,
मुझे फुर्सत ही नहीं मिली,
कभी चाहने से तुम्हें!-
सत्य;
गुलाब के समान होता है।
कितना ही सुंदर क्यों न हो,
किसी न किसी को
चुभता अवश्य है।-
लोग पूछते हैं,
मैं अक्सर मौन,
क्यों हो जाता हूँ?
बोलते-बोलते बीच में,
चुप क्यों हो जाता हूँ?
क्यों नहीं अपनी बात,
पूरी कर पाता हूँ?
क्यों बात करते-करते,
बीच में अटकता हूँ?
अब कैसे कहूँ की,
मैं हर बार कुछ
कहने को होता हूँ,
हर बार फिर
तुम बीच में,
खुद ही
बोल पड़ते हो,
मेरे पास कहने को,
शब्द तो बहुत है,
लेकिन शायद
तुम्हारे पास,
मुझे सुनने का
समय कम है।-