Hritik Gupta  
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Joined 13 March 2019


Joined 13 March 2019
2 DEC 2019 AT 0:14

अल्फाजों से भी आंसू गिरते जा रहे थे
वो हमको देखकर भी, हमको दफन करते जा रहे थे

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25 DEC 2021 AT 23:04

उनकी मोहब्बत का असर उनके नवाज़े मे था
किश्ते हमने भी चुकाई है उनके जनाजो के लिए।

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6 DEC 2021 AT 0:57

हम उस अधूरी मोहब्बत के किस्से है
जहाँ हमको भी किसी ने मोहब्बत दी है

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18 AUG 2020 AT 22:52

गमों को नशे में घोलकर
नशे की चादर ओढ़कर
पीता नहीं हूं कुछ सोचकर
बस यही हूं मै

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16 AUG 2020 AT 23:26

डर मौत का था इसलिए ज़िंदा रहा
डर हैवानियत का होता तो कब का मर गया होता

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9 JUL 2020 AT 22:32

मिलता भी रहता हूं कही तो अपनों से
भुलाया नहीं किसी ने इसलिए
खो भी गया हूं कही तो अपनों से
मुसाफिर भी रास्ता चुनते है अपनी परछाई साथ लेकर
हम तो काफिर है
हम चलते भी है अपनी परछाई छोड़कर

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25 MAY 2020 AT 1:35

क्या भरोसा था इस ज़िन्दगी का
गम भी उठा ना सका अपनी ही ज़िन्दगी का
मुकद्दर भी दामन छुडा कर चला जा रहा
क्या इंतखाब बचा था इस ज़िन्दगी का

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13 APR 2020 AT 0:51

उनके जानाजो की शिफा उनके अल्तमस से उपर होंगी
बे अदब जानजो का दफन भी दुआ - ए- शिफा ही होंगी

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11 APR 2020 AT 0:54

आज हमने उनसे फिर से मोहब्बत करी है
उनके नाम की एक और रात तस्लीम करी है
पर चांद वैसे ही निकला था अपना लिबास ओढ़कर
जैसे ये भी खबर चांद को उन्होंने ही करी है

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11 MAR 2020 AT 0:28

जिस्म की भूख का असर तो कफ़न मे भी नही था
चाहते तो हम भी थे उनका इंतखाब बनना
मिसाले भी मिलती जा रही थी हमको किसी और की पर उन्होंने हमें ही अपना कफ़न बनाना शुरू कर दिया

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