Hrithik Vishwakarma   (✍ ऋतिक विश्वकर्मा)
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दिल से लिख कर दिल में बस जाता हूं... पर दिल से मिलकर भी दिल ना लगाता हूं...
Joined 27 September 2019


दिल से लिख कर दिल में बस जाता हूं... पर दिल से मिलकर भी दिल ना लगाता हूं...
Joined 27 September 2019
15 FEB 2020 AT 8:07

मित्रता और चाटुकारिता में फर्क समझते हैं...
इसलिए दुश्मन ज्यादा दोस्त कम रखते हैं...

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19 NOV 2019 AT 7:23

चुभता तो बहुत कुछ है मुझकाे भी तीर की तरह...
मगर मैं चूप रहता हूं अपनी तकदीर की तरह...

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19 NOV 2019 AT 7:17

शिकायत उन्हें भी रहती है अपनी जिंदगी से दाेस्त...
जिन्हें सब कुछ दिया है जिंदगी ने आैर मिला है जिंदगी से...

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19 NOV 2019 AT 7:10

मेरे साथ उठते-बैठते थे कुछ दाेस्त...
बड़े आदमी बनने से पहले...

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19 NOV 2019 AT 7:01

कोई चले चलता है साथ पूरी जिंदगी ताे कोई कुछ कदम...
कहां है मंजिलाें का अंत यह ताे सफर-सफर की बात है...

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19 NOV 2019 AT 6:55

जिंदगी तू कब तलक मुझे दर-दर फिराएगी मुझे...?
टूटा-फूटा ही सही घर-बार ताे होना चाहिए...

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19 NOV 2019 AT 6:51

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है दाेस्त...
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है...

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14 NOV 2019 AT 20:44

अब क्या सुनाए आपको हम आपबीती...
खैर मनाआे आप की जो आप पे नहीं बीती...

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14 NOV 2019 AT 20:39

कभी साथ बैठो तो कहु कि क्या दर्द है मुझे...
तुम दुर से पुछोगे तो ठीक हूं यही कहंगे...

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14 NOV 2019 AT 20:34

बस ठीक हूं...
इससे बड़ा काेई झूठ नही है...

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