Hrishav Jha   (Hrishav Jha)
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Mutual Writers You Know

My_Instagram_Id :- @jha_hrishav14
Joined 30 September 2018


Mutual Writers You Know

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Joined 30 September 2018
31 DEC 2022 AT 11:55

अब सीने में आग हैं गले में राग हैं
'Hustle' ही पहला यज्ञ यही प्रयाग हैं
सुरमयी गीत से ही रुहमयी संगीत हैं
मंत्रमुग्ध हुए सारे तो यही मेरी जीत हैं।

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24 DEC 2022 AT 11:12

था मैं शूर घर से दूर सपने चूर उड़े नूर मेरे चेहरे से
मेहनत जारी कंधे भारी हक ना मारी ताने सेहरे थे
हां मैं मर्द होता दर्द हूं मैं फर्द आती जर्द जब हंसरे थे
उठे शीश झुके नीच सच ना सुने "Brain Freeze" सारे बेहरे थे।

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17 DEC 2022 AT 14:34

हैं मन में तेरे पाप फिर राम ना मिलेंगे
मैं काल युग का ब्राह्मण त्रेतायुग में जिएंगे
हैं चाह प्रभु को पाना रंग में उनके रम जाना
मैं दास हरि के चरणों में आजीवन हम जिएंगे।

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16 DEC 2022 AT 10:01

डूबा रहूं मैं राम नाम में
हरी बिन हम तो सांस ना लेंगे
सीना चीर के देखो मेरा
तुमको प्रभु श्री राम मिलेंगे।

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24 NOV 2022 AT 13:40

जो चला ना मैं राहों पे राही कैसे कहलाऊंगा
हैं साथ खड़ा मीत बला प्रीत क्यों फिर चाहूंगा ।।

जो जखम दिए सबने रब ने लिखी क्या कहानी हैं
मैं दिल का मारा जग से हारा क्यों जीना फिर चाहूंगा ।।

जवानी मेरी बीती जाए दिवानी का पता नहीं
जो आसानी से मिल गई फिर कदर कुछ रहा नहीं ।।

अब सबर मेरे अंदर खबर लेता कोई मेरा नहीं
मैं किस हाल में रहता साल बीते कब पता नहीं ।।

ये आसमान के तारे हम ह्रासमान बेचारे
वो ज्ञान जगत के आदिश हम गर्दिश के सितारे ।।

अब बाण लक्ष्य को भेदे जो तरकश से निकाले
हैं चीख-चीख के कह रही कामयाबी तुझे पुकारे ।।

ये प्रेम छंद के गीत हैं वो खुश तो मेरी जीत हैं
चंद छन अभी शेष मेरी मन व्याकुल भयभीत हैं ।।

ये मर्द जात की रीत हैं दर्द लाख बदन पर ढीठ हैं
हैं चाह स्वर्ग की तुमको हम नर्क द्वार पर ठीक हैं ।।

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24 NOV 2022 AT 10:05

गंगा पार लड़का का अलग अपना स्वैग हैं
मैं मैथिल ब्राह्मण और ऊंचा अपना पाग हैं।

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12 NOV 2022 AT 9:46

मैं कैसे छुपा लूं ज़ख्म
ये आंखें केह देती हैं
हैं चोट जो दिल पे लगी
तो ठीक ना मरहम से होती हैं।

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14 OCT 2022 AT 14:32

हम कायर नहीं पीछे हटे तेरी खुशी के लिए
अब हम खुद से भी हारे और प्यार भी हारे
तेरी नजरों में गलत बन हम खुद को गिराए
जब होगी विदा तब काटूंगा दिन तेरी तश्वीरों के सहारे।

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13 OCT 2022 AT 13:27

इज़ाजत जो दे तू अगर तेरे इन आंखों में खोया रहूं
ये आंखें समंदर सा गहरा उसी में मैं डूबा रहूं
जो परछाई भी तेरी हां छूले इस रूह को तो
सांसें ये चलती मेरी तो क्यों न मैं तुझको अजूबा कहूं।

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11 OCT 2022 AT 10:54

अब कलम हीं बनाएगी "BRO"
ना करता मैं किसी की नक़ल
अगर रुक गया आज मैं यहीं तो
मुझें हक़ नहीं होने का सफ़ल

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