कुछ आरजू सुखी नदी की पठार के तरहा रह गये
जो देखे थे सपने वो आंसुओं के बाढ़ में बह गये
मुस्कुराना चाहा पर लब धोखा दे गए
पुराने जख्मों के निशान वर्षों बाद भी हरे रह गये
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ठहरो रुको , इंसान हो तुम यंत्र नहीं
भागे फिरते हो खुशियों के पीछे
भीतर हैं वह तुम्हारे कहीं बाहर नहीं
कहाँ गयी तुम्हारी संवेदनायें , करुणा दया भावनाएं
कैसे हो गये पत्थर हृदय से
देव पुरुष हो तुम असुर पुत्र नहीं
आओ फिर से लौट चलो
अपने गौरवमय अतीत के पथ से स्वर्णिम भविष्य की और
नयन खोलो हृदय के , देखो स्वर्गमय है यह जीवन नर्क नहीं-
वर्षों से खोखले उस तने पर
अंकुरित पत्तियों का पवन के साथ लहराना
यूँ लगता है जैसे सुनी कोख में
नन्ही सी जान की किलकारियाँ गूंज उठी हो
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उन्हें लगता है के परवाह नहीं हमें उनकी
के उन्हें एहसास नहीं हर साँस के साथ
वो मुझमें और घुलते जा रहे हैं-
उनके कहने पर हमने लिखना शुरू किया
दिल में भरा है जो उनके लिये प्यार शब्दों में पिरो दिया
पूछा जो उनसे कैसी हैं ये रचनाएँ
सारी हैं एक जैसी कह कर उन्होंने मुह मोड़ लिया-
मैं Pass the parcel का वो तकिया हूँ
जिससे खेलना हर कोई चाहती है
पर अपने पास नहीं रखना चाहती-
लिखने वाले अपने शब्दों को कुछ यूं बयाँ करते हैं
मेरे लिखे शब्दों को मेरी जिंदगी से न जोड़ना ये इल्तिजा करते हैं
नासमझ हैं हम नहीं पता गुर कुछ लिखने का
जो बीती है खुद पे बस उसीको शब्दों में पिरो के बयाँ करते हैं
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अपनी हँसी उड़ाता देख
हर कोई हस देता है मुझ पर
इस हँसी के पीछे का दर्द
कभी न देखा किसी ने-
क्या कभी किसी को खुद से लड़ते देखा है
खुद को तड़पाते , सजा देते देखा है
पागल है ये , दीवाना है प्यार में
देख मुझे जमाना ये कहता है-