एक छाँव माँ के आँचल की बरसी
एक छाँव तेरे झुल्फों की रही
लगता है ख़ुदा कुछ ख़ास मेहरबान है मुझपे-
मेरी मोहब्बत को वो न समझे उनसे कोई गिला नही है
जिसकी हो हर ख्वाहिश पूरी वो इंसा मिला नहीं है
उनका काम है नफरत मेरा काम है मोहब्बत
वो अपना काम करती है मैं अपना काम करता हूँ-
हो गया है मेखाने में इतना आना जाना
की यार हो गया मेरा यहाँ का साकी है
मुझे तो सब याद है शायद तुम कुछ भूल गए
लिखे जो खत थे तुम्हे अभी उनको जलाना बाकी है
मुझसा उसे कोई नहीं चाहेगा उसे समझ में आना बाकी है-
जिसे चाहा जिंदगी से बढ़कर
वो मुझे हासिल न हुआ
मेरी कश्ती डूबी इसीलिए
उसका कोई साहिल न हुआ
है जिंदगी में वीरानियाँ क्योंकि
वो सांसो में शामिल न हुआ
था जिस पे नाज़ मुझे कभी
वो दिल मेरा न हुआ
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है चेहरा तेरा निगाहों में
निकला हु अनजानी राहों में
सजा सा है ये अनजाना सफर
है सुकून मंज़िल तेरा है दर
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फिर भी मैं लिखता हूँ कविता
क्या पता किसी रोज़ तुम्हारी सोच बदल जाए-
तुझ सित्तमगर से दिल लगाने की
इस दिल को मैं क्या सजा दू
जीते जी मुझे मार दिया
इस दिल को सीने से निकाल के फेंक दू-
न जाने ये कैसी हवा चल रही है
दिल के समुन्दर में आग जो जल रही है
मौत आती नही जिया जा नहीं रहा
इश्क़ की ये कैसी सजा मिल रही है-
When I was a child I thought the most painful is injuries which I got....
As I grew older I have suffered lots of pain but the worst of above all is
PAIN OF IGNORANCE-
जब से मिली है उनसे नज़रें
अश्कों के सिवा इन आँखों को मिला कुछ भी नही
मैं चुप हु की तमाशा और न बने
वो समझते है उनसे गिला अब कुछ भी नही-