HIMANSHU TRIPATHI   (हुकुम...)
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Joined 3 October 2020


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10 JUL 2021 AT 21:40

विपरीत परिस्थितियों के आने का सबसे बड़ा लाभ ये है
कि
उन कई चेहरों से नकाब उतर जाता है
जो
आपके अपने होने का दिखावा करते हैं😏

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8 JUL 2021 AT 20:20

कभी-कभी जिंदगी हमारे सामर्थ्य की परीक्षा लेती है
यदि सही मायने में विजय श्री का उद्घोष करना है
तो
अडिग और मौन रहिए....

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26 JUN 2021 AT 15:38

तुम साथ थे, कुछ खास थे
यूं पास थे, एहसास थे...
वक्त बदला दरमियां,फिर
बदले फिर यूं रास्ते...
हाथ छूटे, साथ छूटा
वक़्त की दुस्बारियां...
क्यों टूटी थीं वो चाहतें
क्यों खत्म ही सी आहटें...
ये राज हैं ,जो राज थे...
कर यकीं अब यूं हुकुम का
ये राज रहेंगे, जो राज थे...✍️✍️

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26 JUN 2021 AT 15:15

क्या शिकवा किसी से?...
हुकुम
जीने की ख्वाहिशें ही
अब जीने नहीं देती

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15 JUN 2021 AT 19:50

जीवन की इस दौड़ में
उम्र के हर मोड़ में
भूत से शुरू हुई,
भविष्य की हर होड़ में
हां, यादें पीछा करती हैं
कल जो था, न आज‌ है
हर नज़्म में एक राज है
जिन्दगी बदली है यूं,जैसे
वक्त कुछ‌ तो नाराज़ है
हुकुम,फिर भी
कुछ यादें खींचा करतीं हैं
जैसे यादें पीछा करतीं हैं✍️✍️ हुकुम

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14 JUN 2021 AT 22:40

सच कहूं तो अपना है...
हां
ये साथ नहीं छोड़ता...
मैं कहां,कभी,कैसा हूं
ये मुंह नहीं मोड़ता...
जबसे हाथ थामा है...
ये अपनों से भी अपना है...
साथ किसी‌ का सपना है...
ये अधूरापन ही अपना है....

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14 JUN 2021 AT 22:15

मेरा घर है मुझको ढूंढता...
मैं ढूंढता सुकून को...
मैं घर में ही लापता हूं...
मुद्दतों से खुद को मिला ना...
हां मैं सजायाफ्ता हूं...
हुकुम...
क्यूं घर है मुझको ढूंढता...
मैं चाहता हूं,मैं ना मिलूं...
कुछ लम्हे खामोशी ओढ़ लूं...
न कोई इजहार हो,न कोई भी तकरार हो,
ना आस हो,ना एहसास हो...
न कोई मेरे पास हो...
मैं चाहता हूं, रहूं लापता...
क्यूं घर है मुझको ढूंढता???✍️✍️ हुकुम

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23 FEB 2021 AT 23:04

फकत चन्द लम्हों की
जिन्दगी...
कायल कर लो...
या
घायल कर लो...

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8 FEB 2021 AT 17:28

जब से,
तेरी आंखों में देखी
झलक-ए-सूरत मेरी...
हुकुम...
तब से,
मेरे घर के आइने,
मुझे अच्छे नहीं लगते...

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31 JAN 2021 AT 19:01

दिल टूटा है, या है सलामत?...
सवाल न करो ये गैरों जैसे...
गर. हुकुम
मेरे अपने हो,तो वजह जानो
कि टूटा है दिल ,तो ये टूटा कैसे?...

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