“बेवक़्त...बेवज़ह...बेसबब सी बेरुखी तेरी,
फिर भी बेइंतहा तुझे चाहने की बेबसी मेरी।”
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23 सितम्बर जन्मदिन
“उसे फ़ुर्सत ही न मिली पढ़ने की फराज़,
और...हम उसके शहर में बिकते रहे क़िताबों की तरह।-
“ख़ुदगर्ज़ बना देती है तलब की शिद्दत भी,
प्यासे को कोई दूसरा प्यासा नहीं लगता।”
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“रखा करो नजदीकियां...ज़िन्दगी का कुछ भरोसा नहीं...,
फिर मत कहना चले भी गए और बताया भी नहीं...!”
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देर तक ख़ाली हाथों को देखते रहे गौर से,
लोग किस तरह लकीरों से निकल जाते है।
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“ये वो दश्त है जहाँ रास्ता नहीं मिलता,
अभी से लौट चलो घर...कि अभी उजाला है।”
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“बैठे बैठे भी दिल घबरा जाता है,
जाने वालों का जाना जब याद आता है।”
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“वक़्त उतना भी ना लगाना हाल सुनने में,
बयाँ करने को जब कोई दास्तान ही ना बची हो।”
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“ऐसे हालातों से गुज़रे हुए हैं हम,
जिसमें ख़्वाब मरते नहीं मार दिए जाते हैं।”
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“महसूस कर रहें हैं तेरी लापरवाहियाँ कुछ दिनों से...,
अगर हम बदल गये तो...मनाना तेरे बस की बात ना होगी...।”
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