आज राह चलते उस मुक़द्दर से मुलाक़ात हो गयी...
जिसे कोसते थे उम्र भर आज उस से
रूबरू कुछ बात हो गयी.....
उन लकीरों के खेल का भी आखिर पूछ ही लिया मैंने उस से
कि क्या सच में जीत-हार का सार है बस उनमे...??
बोला वो सुनकर मेरी यह बात...
कि अगर होती इन लकीरों की इतनी औक़ात...
तो शायद उस आसमान को कभी नहीं छू पाते
वो बिन हाथो वाले दिव्यांग...!!
बात उसकी मुझे ठीक लगी..
तो मैंने अपने सवालो की कड़ी जारी रखी...
पूछा मैंने , तो क्या इन सब में है
उस ऊपर वाले का कोई चमत्कार....??
इस बार वो मेरे सवाल पर थोड़ा मुस्कुराया.....
बोला की उस ऊपर वाले ने सिर्फ तुझे है बनाया...
बाकी तो सब है सिर्फ तेरे कर्म का कमाया...!!
बाते उसकी बड़ी-बड़ी थी.....
लेकिन शायद मेरे दोस्त जिंदगी का सच भी वो ही थी...
जिंदगी का सच भी वो ही थी...!!-
लेकिन ये रूह की तलब है की मिटती ही नहीं..!!✍✍
आज भी उठने में इस अधूरी नींद ने देर करवाई है...
"काश माँ यहाँ होती" यह सोच कर आज फिर घर की याद आई है..!!
होकर जल्दी से तैयार जब मैंने उस टेबल पर नजर घुमायी है.....
तो उस खाली मेज़ ने माँ के हाथ के खाने की कमी आज फिर मुझे महसूस करवाई है...!!
घर से निकलते वक़्त वो "माँ-पापा की मुस्कान" यहाँ नहीं देती अब दिखाई है...
और शाम को आने पर उस दरवाजे पर लटके ताले ने मुझे मेरे अकेलेपन की हक़ीक़त आज फिर बतलाई है.!!
वो ख़्वाहिशें शायद पूरी हो गयी होगी लेकिन फिर भी दिल में एक अजीब सी कमी मैंने पायी है....
और इस मकान में रहते हुए भी न जाने क्यों मुझे उस घर की याद हर रोज ही आई है...!!-
इन कागज़ो पर कलम तो पहले भी चलती थी.....
लेकिन इसे मशहूर तो इन शब्दों में छुपे तुम्हारे सुरूर ने ही किया है..!!-
उन रास्तो से आज भी निकलना होता है हमारा...
बस बदला है तो ,तुम्हे ढूंढती इन निग़ाहों का नजरिया..!!
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