Himanshu Sahu   (HimanshuSahu)
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Joined 22 January 2021


Joined 22 January 2021
23 JAN 2022 AT 1:02

देश भक्ति के सोपान लिए , हाथों में उसके ज्वाला थी !
माथे पर रंग आज़ादी का , हर पग पर विजय पताका थी !
गिरफ़्तारियां ग्यारह दी उसने ,अंग्रेज़ हुकुमत भागी थी !
हर आक्रमड विजयी था उसका, रण चंडी उसके आगे थी !
काकू कहते थे सब उसको , सन्यासी कला निराली थी !
देश-विदेश है भटका वो , उसे स्वदेश की मिट्टी प्यारी थी !
अंग्रेज़ जिसे ना बांध सके तब शब्द कहाँ बांध पाएंगे !
आगामी वर्षों में शायद ही ऐसे सपूत पाए जाएंगे !
हिमांशु साहू

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12 JAN 2022 AT 22:35

नेतृत्व पथ पर निकला मनुष्य है !
कभी पुत्र नेतृत्व का पालन करता ,
कभी पिता नेतृत्व में लालन करता ,

मोह बंधन के व्यापक पथ पर
निरंतर निश्छल है आगे बढ़ता ,
सभी दृश्यों का द्रष्टा बनकर ,
प्रफुल्लित हो जीवन प्रेरित करता !

ऐसा विचित्र नेतृत्व मेरे आँगन में रहता !
( हिमांशु साहू )

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25 OCT 2021 AT 21:54

कैसा है ये प्राकर्तिक मेल ,
अनूठा सा है भावनाओ का खेल ,
अलबेली सी मुस्कान लिए ,
पनपति जैसे ऋतू में बेल !!
हिमांशु साहू

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14 OCT 2021 AT 8:56

घर-आँगन में एक नई मुस्कान आई है,
मधुर किलकारी के साथ एक नन्हीं परी आई है.

ईश्वर के आशीर्वाद से अष्टमी पर लक्ष्मी के रूप में घर में बिटिया का आगमन हुआ है.

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13 OCT 2021 AT 19:06

जीवत्व रोमांचक सा प्रतीत होता है ,
हर असमान्य परिस्थिति में समान्यता का बोध होता है ,
प्रतीक्षा के ये तीक्ष्ण क्षण कठिनाईओं को चीरते जाते हैं ,
जैसे हर एक तेज़ सूर्य अन्धकार को निगल निकलता है !
हिमांशु साहू

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7 OCT 2021 AT 0:07

हवा के झोकों में तिनका डगमगाता है !
उचाहिओं से होता हुआ मिट्टी में टूट जाता है ,
अक्षय स्मर्तिय में बना वो मौन रहता है !
आँधियों तुफानो में भी जो दीपक जगमगाता है !
हिमांशु साहू

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25 JUL 2021 AT 1:28

जीवनकाल के सोपानो में, अचरज सा सयोंग बनता है !
भाँति- भाँति के पथों से होता ये जीवन गुज़रता है !

यहाँ समय का कोप भी है और रोष भी है ,
यहाँ कोष में सम्मलित दोष भी है !
हर प्राणी अपने बंधन में मुक्ति खोजना चाहता है !
हर कौशिक (उल्लू ) जैसे प्रकाश में तिमिर खोजना चाहता है !

जीवनकाल के सोपानो में, अचरज सा सयोंग बनता है !
भाँति- भाँति के पथों से होता ये जीवन गुज़रता है !
हिमांशु साहू

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18 JUN 2021 AT 0:07

जो खानदानी रहीस हैं वो ,
मिजाज़ रखते हैं नर्म अपना !
तुम्हारा लहज़ा बता रहा है ,
तुम्हारी दौलत नई - नई है !

खामोश लब हैं झुकी हैं पलकें ,
दिलों में उलफत नई नई है !

By- Shabeena Adeeb

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6 JUN 2021 AT 18:36

झुक झुक ककर सीधा खड़ा हुआ ,
अब फिर झुकाने का शोक नहीं ,
अपने ही हाथों रचा स्वयं ,
तुमसे मिटने का खौफ नहीं ,
तुम हालातों की भट्टी में ,
जब जब भी मुझको झोंकोंगे ,
तप तप कर सोना बनूँगा में ,
तुम मुझको कब तक रोकोगे !

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6 JUN 2021 AT 18:30

मैं सागर से भी गहरा हूँ ,
तुम कब तक कंकड़ फेंकोगे ,
चुन चुन कर आगे बढूँगा में ,
तुम मुझको कब तक रोकोगे !

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