हे दशरथ नन्दन, हे कौशल्या के दुलारे अब आ भी जाओ जग तुम्हे पुकारे दशको से हैं सब आस लगाये पग पग पर हैं नैन बिछाये जल, थल, भू, अंबर के बासी दर्शन के हैं सब अभिलाशी हो रही है उत्सव की तैयारी सजने लगी है नगरी तुम्हारी करो तृप्त अब सियापती नयन हमारे तरस रहे कब से जो दर्शन को तुम्हारे हे रघुकुल के नायक, हे रघुनंदन कर जोड़ करे हम सब तुमको वंदन हे धनुर्धारि, हे मर्यादा के पुजारी करो स्वीकार प्रभु अबकी विनती हमारी जय श्री राम
ये किसकी तलाश में हम यहाँ आ गयें हैं निकल कर आशियां से अब जहाँ आ गयें हैं हासिल है कुछ मगर कुछ भी हासिल नहीं एक तेरी चाह में हम कहाँ से कहाँ आ गयें हैं
हर एक दर्द और गम की मेरे दर पर आहट है देख मेरे चेहरे पर फिर भी एक मुस्कुराहट है यूं तो मैं डरता नहीं अब खोने से कुछ भी मगर तेरे बिछड़ जाने के खयाल से थोड़ी सी घबराहट है
फिर किसी से दिल लगा लूं, नहीं ये अब नहीं होगा मैं फिर किसी के ख्वाब सजा लूं , नहीं ये अब नहीं होगा फिर समेटूँ खुद के टुकड़े, टुकड़ो में फिर बिखर जाऊँ, मैं फिर किसी को अपना हक़दार बना दूं, नहीं ये अब नहीं होगा, नम हो आंखें या तड़पे ये दिल, फिर दिल को किसी का मोहताज बना दूं नहीं ये अब नहीं होगा, धड़कनों में फिर किसी का नाम बसा दूं नहीं ये अब नहीं होगा....
आस्माँ से जमीं की लकीरें जहाँ मिलती हैं मैं मिलूँगा तुम से वहाँ तकदीरें जहाँ मिलती हैं अगर पूछे कोई पता मेरा तो बस इतना बता देना मैं रहता हूँ उस शहर में तुम्हारी तस्वीरें जहाँ मिलती हैं
मेरी सांसों में तुम्हारे सांसों की महक अभी बाकी है मेरे कानों में तुम्हारे हसी की गूंजती चहक अभी बाकी है अभी बाकी है मेरे दिल के टुकड़ों में मोहब्बत तुम्हारी मेरी नम आंखों में टूटे हुए ख्वाबों की झलक अभी बाकी है