हुंकार
किसने कैद कर रखा तुझे,
तुम तो एक आजाद पंछी,
एक चिड़िया, एक आकाश हो।
तुम्हारा ही तो हैं, ये सारा आसमां,
तुझसे ही तो खुदा का विश्वास हो।
ऊंचे पर्वतों की श्रृंखला तुम,
तुम ही तो यह धारा, ये आकाश हो।
सिंह की दहाड़ तुम,
तूफ़ा की ललकार तुम,
चट्टान सी मजबूत कृपाण हो।
कर विनाश अपने डर का तू ,
तुमसे ही तो शक्ति का आभास हो।
न जीत हो, न हार हो,
सिर्फ तेरा एक वार हो,
भरे जो हुंकार तू,
मचता दुनिया में हाहाकार हो।
ललकार दे, फटकार दे ,
आज तू खुद को सवार दे।
कदम बढ़ा, कदम मिला,संहार कर,
अपनी शक्ति का विस्तार कर।
जो कैद कर सके तुझे कोई,
तो तू पुनः उसे ललकार दे।
तो तू पुनः उसे ललकार दे।।
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