आज सोचा कुछ ऋण चूका दू अपनी परवरिश का
पर कैसे?
क्या वो हर्फ़ जो माथे की झुर्रियों में दर्ज हैे उनको मिटा पाऊंगा ।
या वो कंधे जो मेरी पढाई का बोझ उठाते-2 झुक गए उनको उठा पाऊंगा ।
क्या वो घर का काम काज करती माँ की उंगलियों में हुई गठिया का इलाज बन सकूँगा ।
या वो मधुमेह का रोग जो मेरे भविष्य की चिंता करके आपने पाल लिया उसका उपचार कर सकूँगा ।
तीमारदारी कर पाउँगा कभी आपकी, जैसी आपने मेरे बीमार होने पे राते जाग के की ।
या चौकीदारी कर पाउँगा कभी आपकी ,जैसे आप रातो को उठ उठ के देखते थे की मुझे नींद पड़ी की नहीं ।-
कभी किसान को खाना खाते देखा है ??
वो चमकदार मेहेंगी प्लेट नहीं एल्युमीनियम की थाली में खाता है जिसकी चारदीवारी होती है ताकि अन्न का एक दाना भी गिर ना जाये
वो नक्काशीदार teak wood डाइनिंग टेबल पर नहीं ज़मीन पर पालती मारकर बैठता है ताकि खाते वक़्त उसके शरीर का स्पर्श उस ज़मीन से जुड़ा रहे जिसपे वो अनाज उपजा है
वो खाने में कमी नहीं निकालता बल्कि सबसे पहले हाथ जोड़ कर अन्नपूर्णा देवी की और कृतग्यता प्रकट करता है की उसकी थाली में भोजन है
वो छप्पन भोग से भोग नहीं लगाता ना बुफे में सैकड़ो डिशेस में चुन चुन के लेता छोड़ता है बल्कि अपनी थाली में मोती रोटी,हरी मिर्च , थोड़ा सा नून और प्याज जिसे वो मुट्ठी से फोड़ता है।
वो अन्न का एक दाना भी बर्बाद नहीं होने देता
वो चम्मच छुरी कांटे से नहीं बल्कि हाथो से दाल भात खूब मसलकर फिर बड़ी ऊँगली से थाली साफ़ कर उसको चाट चाट कर खाता है
रही सही कसर मिटाने के लिए वो उसी थाली में ही पानी दाल कर पी जाता है
अन्न की कदर और नमक हलाली तभी समझ आएगी जब कभी आप उनके बगल बैठकर इसी तरह खाना खाना सीख पाएंगे।-
मैं बस खाते वक़्त ही tv देखता हूं
मेरी थाली मे परोसी रोटी सब्जी दाल भात
किसान के खेत से आती है
मेरे ज़ेहेन मे उपजी नफरत घृणा tv पर चिल्लाते डराते
पत्रकार परोसते है
मेरी भूख किसान की मेहनत मिटाती है
मेरा दुख tv पर चलती उन्मादता बढाती है
tv चलने से मेरे घर मे सब चिढ चिढ़े हो रहे है
मैं tv बंद करके खेत की पगडण्डी पर सैर को चलता हूं
मैं लौटने पर किसान और ज़मीन के लिए कृतग्यता महसूस करता हूं
मैं अपनी थाली के साथ नमक हरामी नहीं कर सकता
मुझे फ़िल्मी अभिनेत्रियों का पीछा करते पत्रकार
वो कौन साथ नशा करती है यह असल मुद्दे भटकाने की कोशिशे लगता है
इसलिये मैं चुप चाप तन मन से किसानों के साथ खड़ा हो जाता हूं
इसलिये tv बंद करके खाया हुआ खाना मेरे शरीर को लगता है
tv पर चलती विभत्स्ता मेरे मन को कुंठित नहीं कर पाती
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है इंसानी मिट्टी का सफर
जब तक रूह रही उसमे जिए रही
जब रूह फ़ना हुई तो जमींदोज़ हुई-
यूँ तो मै पैदा इंसान ही हुआ था
पर इस कोरोना बीमारी ने मुझे इच्छाधारी बना दिया
अब तो कभी कभी मुझे भी लगता है की अपुनिच भगवान है
पर फिर भूख और थकान लगने पर यह ख्याल टूट जाता है
मैं इच्छाधारी अपने हुक्मरानो का हुक्म तामील के लिए बना हूं
जिनके लिए मैं हमेशा से उनकी प्रयोगशाला का चूहा हूं
फिर एक रात हुकूमत के शहर छोड़ने के फरमान ने
हमें भेड़ बकरी बनाकर सैकड़ो मीलों पैदल चलने को मजबूर कर दिया
रास्ते भर, हर चाक चौराहे पर पुलिस वालो ने
कभी मुर्गा बनाके पीठ पर सामान लदवा दिया
कभी मेंढक बना के कुदवा कुदवा के चलवा दिया
बरेली मे तो मुझे बीवी बच्चों के साथ बीच चौराहे बैठा कर
मच्छर मारने वाली दवाई का छिड़काव कर दिया
आँखों मे जलन सर् दर्द होने पर मार के भगा दिया
जी हुज़ूर मैं मानता हूं आपकी प्रोयगशाला का जंतु हूं
रास्ते भर लोग हमें कौतहूल से देखते रहे
हमें 2 पूड़ी खिलाकर 10 फोटो लेते रहे
हमने सुना था तस्वीर लेते समय मुस्कुराना होता है
पर वो तो चेहरे पर हताशा मायूसी मांग रहे थे वरना likes कम हो जाते
तो हुज़ूर आप जो लोग लॉक डाउन की वजह से बच्चो को चिड़िया घर नहीं ले जा सके
हम गरीबो ने भांति भांति के रूप धारण करके मुफ्त मे आपका मनोरंजन किया है
तो हुज़ूर जब आपका दिल पूरी तरह से बहल जाए
तो बता देना हम भी कुछ रोज़ इंसान बन कर जीना चाहते है-
ऐ मेरे गरीब देहाती दोस्त
तुम जो आज बेगैरत होकर पैदल ही अपने गाँव निकल पड़े हो
हो सके तो भूल कर भी अब वापस इस ओर मत आना
यह निर्दयी निर्लज्ज लोगो की बस्ती है
जहाँ संवेदना गिरवी रखकर फ्लैट की EMI भरी जाती है
जिस सडक पर तुम चलकर इस मायावी शहर अच्छी ज़िन्दगी का सपना लिए आये थे
आज वो सपना पल पल टूट रहा तुम्हारे अपनी पैरो से कुचल कर
जिन मिलो फैक्टरियों मे सालो तुमने अपना खून पसीना बहाया
जिनके मशीनो मे तुम्हारी ऊँगली हाथ भी कट गए
आज उनके मालिकों ने उसी मिल का गेट तुम्हारे चेहरे पर दे मारा है
जिन फ्लैटों मे तुम दिन रात गार्ड बनके चौकीदारी किये हो
पूरी पूरी रात नींद से झूझे और मच्छर से खून चुस्वाए हो
जहाँ के बाशिंदे अब भी तुम्हारा नाम नहीं जानते ओह भैया कहते है त्याग दो इनको
यह जो थोड़ा बहुत पढ़ लिखकर तुम्हे fb पर स्टुपिड मोरोन लिखने वाली जनता है
इनको अपनी औकात अपनी गैरमजूदगी महसूस करा ही दो दोस्त
लौट जाओ तुम्हे तुम्हारा गाँव माई बाउ खेत खलिहान बुलाते है
रूखी सूखी नून रोटी ही इस सफर की भूख और कुएँ का पानी ही प्यास भुजा पायेगा तुम्हारी
यह जो पुलिस वाले हर चौराहे पर तुम्हे सामान लाडवा के मुर्गा बना रहे है लोटवा के वीडियो बना के हंस रहे है
इन्ही जैसे लोगो के लिए सीरिया के मरते हुए बच्चे ने कहा था
की मैं ऊपर जाके भगवान से तुम सबकी शिकायत करूँगा-
मै बचपन मे हैंडपम्प और हैंडसम मे कंफ्यूज होता था
क्युकी मेरा एक नौकर मुझे भैया बहुत हैंडपम्प लग रहे हो कह के चिढ़ाता था
मंदिर के बाहर लगा यह हैंडपम्प वास्तव मे बहुत हैंडसम लगता था
क्योंकि मंदिर हो या मस्जिद
कब्रिस्तान हो या शमशान
वजू हो या हस्त प्रक्ष|लन
हर पवित्र कार्य के लिए इसका प्रयोग होता है
यह उतना मीठा होता है जितनी गहरी इसकी जड़
यह गर्मी मे शीतल जल से प्यासो की प्यास बुझाता है
तो जाड़े मे कुंकुं पानी से नहाने की हिम्मत जगाता है
मुझे इसका अकार शिवलिङ्ग सा दिखता है
उस रोज़ दंगों ने इस पवित्र स्थल को भी खंडित कर दिया
वो चाकू जिससे हिन्दू मुसलमान दोनों पर वार हुआ इसी से धोये गए थे |
इसी के चबूतरे पर दोनों का लहू नाली से होता हुआ ज़मी से मिला
पोस्ट पार्टम घर के बाहर भी एक हैंडपम्प ही पर लाशें धोयी गयी थी
अब मुझे हैंडपम्प HANDSOME नहीं लगता-
खाने की अहमियत समझनी हो तो इस इंसान को देखो
यह महज़ कूड़े मे फ़ेंकी रोटी धुल के नहीं खा रहा है
यह हम सब की ज़रूरत से ज़्यादा भरी थाली पर पानी फेर रहा है
हमारे सिंक की जाली मे फसे फेके हुए खाने को तरसता यह इंसान
हमारे इंसान होने पर ही सवाल उठा रहा है
हर उस इंसान का जो खाना छोड़ने को अमीरी से तौलता है
इसको देखने के बाद मेरी थाली झूठी लगती है मेरा खून खौलता है
यह रोटी घी मे नहीं सरकारी नल के पानी से चुपड़ी हुई है
इसका स्वाद नमक से आता है ना की छप्पन भोग थाली से
जो रोज़ शाम तुम भगवान को भोग लगा के खा जाते हो |
अन्नपूर्णा देवी सबका पेट भरे पर सबसे पहले उसका जो यह रोटी खाता हो |-