HIMANSHU PAWAR   (Himanshu pawar)
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Poetry lover ,civil service aspirant, introvert
Joined 18 April 2018


Poetry lover ,civil service aspirant, introvert
Joined 18 April 2018
7 DEC 2018 AT 0:48

कई रतजगें के बाद ये आरजू गुज़र गयी।।
क़रीब आकर उसकी खुशबू गुजर गई।।
मेरा ख़्वाब मेरी बाहों में पिघला भी नही
तमाम उम्र इसी जुस्तजू में गुजर गई।।।

Himanshu pawar







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27 SEP 2018 AT 17:30

कुछ लोग है जो इस सफ़र के लिए मुनासिफ़ नहीँ
क्या करूँ जानता हूं कि वो मुनाफ़िक़ भी नही।।

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26 SEP 2018 AT 23:43

लगता है कि कोई हवा बहा कर लाती है
वरना इतनी मायूसी आखिर कहाँ से आती है।

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28 JUL 2018 AT 2:01

लगता है कोई हवा है,
जो इसको बहाकर लाती है
वरना इतनी मायूसी
आखिर कहाँ से आती है।।





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24 JUL 2018 AT 21:26

इतने इंतजार के बाद हमसे ,ठहरा नही जाता
उन बंदिशों का देखा अब ,पहरा नही जाता।।

जहन का बुखार है उतरता ही नही
प्यास समंदर की है , दूर ये सहरा नही जाता।।





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11 JUL 2018 AT 15:30

इक उम्र लगी इसकी तस्दीक़ करने में
हक़ीक़त क्या है ,उसको नज़दीक करने में ।।

दूर तक सिवाय सहरा के कुछ ना मिला
वक़्त लगता है ज़रा खुद को ठीक करने में।।

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29 JUN 2018 AT 16:09

चीख़ दबकर ख़ामोशी अख़्तियार करती है
दुःख तो ये है इसका समर्थन सरकार करती है।।

ये शायरी भी मियां किसी लत से कम नहीं
अच्छे खासे आदमी को बेकार करती है।।

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25 JUN 2018 AT 12:27

एक बार फिर, फ़जीहत वही
कहीं हुक़्म तो कही नसीहत सही।।

मुसाफ़िर वही ,ठिकाना नही
जिंदगी की रुपहली हकीकत यहीं।।



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18 JUN 2018 AT 23:16

एक तरीका नया ईजाद करके
मरते है लोग दंगे- फ़साद करके।।

हदें करते है पार,दरिंदगी की सब
बिछती है लाशें यहाँ,जिहाद करके ।।।

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17 JUN 2018 AT 23:02

यकीनन ये भी एक अजूबा रहा
रूह प्यासी रही,जिस्म डूबा रहा

दिखीं बहारें, रंगीन नज़ारे हर तरफ
तन भटकता रहा ,मन ये ऊबा रहा।।



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