वो कहती है भूल जा मुझे
नई शुरुआत तो कर
नए लोग है नई जिंदगी है तेरी
अब इन चक्कर मे ना पड़
उस बेवकूफ को कोई समझाये
भला सास लेना भी कोई भूलता है क्या।-
Kamjor ho gya tho tum gunge ho jaoge..
तेरी यादों के सहारे अब दिन है कटते मेरे
तू जो हाँ कह देती तो साथ ही मरते तेरे
तू ही प्यार
तू ही ख़्वाब
तू ही सँसार मेरे
लेके आया था मंलसूत्र नाम के तेरे
जो तू हाँ कह देती लेते सात फेरे
तेरी यादों के सहारे अब दिन है कटते मेरे
तू जो हाँ कह देती तो साथ ही मरते तेरे-
ख्वाबों को पाने में कुछ ऐसे खो से गये है
कुछ अपनो को ही भूल से गये है
जरूरतों की जदोजहद में
जिंदगी को जीना ही भूल से गये है।
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वक्त भी दिया
प्यार भी किया
सम्मान हद से ज्यादा किया
काश ऐ जिंदगी तू भी मेरे साथ यही वफ़ा करता
मुँह पे अच्छा बन तो गया
काश अपने कर्मो से भी अच्छा बनता
तो आज ना ये वक्त इनता खराब होता
प्यार भी होता सम्मान भी होता
तेरा मेरा साथ भी होता।-
ये आफ़ताब अब जले ना जले
इस जहाँ में रोशनी रहे ना रहे
गुलशन-ऐ-मोहब्बत में
अब फूल खिले या ना खिले
तेरी यादें तपिश-ए-दिल में हमेशा रहेंगी।-
लोगो के ख़ुशियों का कारण बनते बनते
उनके ग़मो का आँसू बनता गया
जिंदगी के सवालों का जवाब देते देते
ख़ुद एक सवाल बनता गया
लोगो मे प्यार ढूढ़ते ढूढ़ते
नफ़रत का समान बनता गया
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मैं समुन्दर से तैरने का सलीका सीखता गया
वो तालाब में तैरते हुए समुन्दर पार कर गया
मैं उसकी खुशियों के लिए हारता गया
वो मेरे हारने के खुशियों में जीतता गया-
हौसले कमजोर नही हुए
अभी तो बस मंजिल नापी है
रास्तो में जरूर हादसें हुए
अभी तो बदन का सारा लहू बाकी है-
ना जाने अब किसकी तलाश है
जिंदगी तो बस बचा खुचा इम्तिहान है
संघर्षो का भी गजब आयाम है
कभी आग तो कभी सैलाब है
खुशी अब तो तेरा ही इंतेज़ार है
गम हर वक्त हाथो में हाथ लिए तैयार है
पर्दो के पीछे कोई नया आने को बेकरार है
उसे क्या पता यहां हम कितने परेशान है
घर पे भी अजीब सवाल है
कभी डीग्री कभी नौकरी की मांग है
हर किसी को नौकरी की ही तलाश है
हमको पता नही किसकी तलाश है-
औरत थी
चलो वो भी ना सही
इंसान थी
गिद्धों के झुंड ने खूब नोचा
दिल दीमक गुर्दे फेफड़े सब नोच डाले
सत्ता ने आँखे बंद कर सब देखा
ना अभिव्यक्ति की आज़ादी गयी
ना मानवता का अधिकार हनन
अब उसी झुंड के एक गिद्ध की बारी आई
मानवता तो छोड़िये
लोकतंत्र खतरे में आ गया
सत्ता जागी और खुद सड़को पे आ बैठी
क्या मंत्री क्या नेता और क्या बिन रीढ़ के पत्रकार
सब ने आवाज़ उठाई
सब ने गलत सही का पाठ पढ़ाया
सर्कस तो तुमने ही शुरू किया था
हाँ रिंग मास्टर जरूर कोई और था
भूल गए क्या?
क्या कमिश्नर क्या पुलिस क्या मुख्यमंत्री
किसी को ना छोड़ा सबको कटघरे में किया खड़ा
कुदरत खेल देखो आज गिद्व खुद कटघरे में खड़ा
लोकतंत्र और मानवता की दुहाई लगी है
ये और कुछ नही
किसी के रोते हुए आत्मा की बद्दुवाई है।-