दिल की बाते किसी से ना कहना,
कब दुश्मन दोस्त और दोस्त दुश्मन हो जाए।
दुश्मनों से कम अपने से ज्यादा सतर्क रहना,
कब अपने दुश्मनों से भी बड़े दुश्मन हो जाए।
अपने आंखों का पानी खुद के लिए रखना,
क्या पता कब कौन इस्तेमाल कर जाए।
अपने दुख ,जज्बात और सवाल अपने तक रखना,
क्या पता कब कौन कहा खोल जाए।-
Kamjor ho gya tho tum gunge ho jaoge..
हमको यू ही बदनाम कर रखा है जमाने ने
हमने तो कुछ ही राते काटी थी मैखाने में
वो हमसे यू ही खफ़ा है, रातों में घर ना आने से
हम अपनी ही रपट लिखाने पहुँचे है आज थाने में
दारोग़ा भी अभी अभी आया है बस मैख़ाने से
दरोगा की ही रपट लिखाने न जाने कौन बैठा था थाने में,-
बेवक्त चले गये,
कुछ अधूरे ख्वाब,
कुछ अधूरी बातें,
कुछ अधूरे किस्से,
सब कुछ यही छोड़ गए।
करना थी बहुत सी गुफ्तगू,
सबको यू खमोश छोड़ गए,
तुम आँखे बंद कर चले गए,
सब कुछ यही छोड़ गए।-
तुम जैसी हो वैसी ही रहना
बदलना तो मौसम की फ़ितरत है
तुम तो मेरे अरमानो की बारिश हो
बदलना तो समय की नियति है
तुम तो सात फेरो में बाधि मेरी सास हो
तुम जैसी हो वैसी ही रहना
बदलना तो बागों के फूल को है
तुम तो मेरे जीवन मे सुगन्धित गुलाब हो
बदलना तो दिन और रात को है
तुम तो आयी एक सुनहरी सुबह हो
तुम जैसी हो वैसी ही रहना
बदलना तो खेतो की फसलों को है
तुम तो मेरे जीवन की खाद हो
बदलना तो राहो की तक़दीर है
तुम तो मंजिल की आखिरी सड़क हो
तुम जैसी हो वैसी ही रहना
तुम ही तो इस धड़कन की जान हो
तुम ही तो सासों में बसी मिठास हो
तुम ही तो मेरा संसार हो
तुम जैसी हो वैसी ही रहना-
कितनी बातें है कहने को
कितने अरमां है बहने को
कितने सपने है सजने को
कितने दर्द है कहने को
कितनी मोहब्बत है करने को
कितना पानी है आँखों से बहने को
कितना इंतेज़ार है तेरे आने को
कितने बेकरार है तेरे साथ मे होने को
कितने लोग है नींद से जगाने को
इन सारे ख्वाबो से बाहर लाने को
बस तू नही है ये सारे अरमां पूरे करने को-
डर अब किसी और से ज्यादा खुद से है
कहि बना बनाया बिगाड़ न दु
कही किसी को रुला न दु
कहि बसा बसाया उजाड़ ना दु
डर अब किसी और से ज्यादा खुद से है
कहि निदे हराम ना कर दु
कहि सही को गलत ना कर दु
किसी के बेरुखी का कारण ना बन जाऊं
डर अब किसी और से ज्यादा खुद से है
कहि रिश्ते ना तोड़ दु
कहि अपने ना खो दूं
कहि सपने ना खो दु
डर अब किसी और से ज्यादा खुद से है
कहि खुद ही अपना दुश्मन न बन जाऊं
कहि खुद ही खुद में खो ना जाऊ
कहि खुद के गमो का कारण ना बन जाऊं-
हम सही हो के भी गलत हो गए।
उनके अशुओ की धार ने,
गलत को भी सही के कर गए।-
मुझे तुमसे नाराज़गी क्या थी,
एक बार पूछ तो लिया होता।
हम तो खुद को मानवाने बैठे थे,
एक बार मना तो लिया होता।-
ये खुद से नाराज होने का बहाना था,
वरना नाराज़गी तो तुमने देखी ही नही।
ये खुद को मनवाने की जद्दोजहद थी,
वरना गुस्सा तो तुमने देखा ही नही।-
उनको शिकवा थी मेरे वक्त से,
दे दिया।
उनको शिकवा थीं मेरी मोहब्बत से,
भरपूर किया।
उनको शिकवा थी मेरी बफादारी से,
जी जान से निभाई।
उनको शिकवा थी मेरे बोलने से,
चुप हो गया।
उनको शिकवा थी मेरे बचपने से,
बड़ा हो गया।
जब उनको सब मिल गया,
वो रुखसत हो गयी मेरी दुनियां से।-