"तुम.."
जब भी मुझे याद आते हो, तब मैं कोई कविता या लिखने लगता हूं..
उस कविता में, मैं तुम्हारा नाम कभी नहीं लिखता..
बस पूरी कविता को तुम्हारे इर्द-गिर्द लिखता हूं..
मुझे अच्छा लगता है बार-बार तुम्हारी बातें करना,
तुम्हें छिपा कर भी इस तरह पंक्तियों में सबको दिखा देना..
जैसे देह में प्राण न रहने पर हमारी मृत्यु हो जाती है,
ठीक वैसे ही तुम्हारे उल्लेख के बिना मेरी कविताओं की मृत्यु हो जाती है..
कोई भी मनुष्य कभी अमर नहीं होता.. पर मैं चाहूंगा तुम्हें अपनी पंक्तियों में सदा के लिए जीवित रखना..
जो कि मेरी मृत्यु के बाद भी अमर रहेंगी,
इसी तरह तुम भी सदा के लिए अमर हो जाओगी मेरी इन पंक्तियों में..
मेरे जीवन में मेरे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रेम है..
और उस प्रेम का अर्थ मेरे लिए इस कविता का पहला शब्द है..!!
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