तुम्हारी मौजूदगी मेरी रातों को
कुछ इस तरह संवार देती है
जैसे चांदनी
किसी वीरान आंगन में उतर आए
वो नींद जो अक्सर रूठ जाती है
अब तुम्हारे ख्यालों की लोरी सुनकर
खुद ब खुद आँखों में उतर आती है
-
छू जाते हो तुम मुझे
बेशक, ख्वाब बन कर ही सही
कौन कहता है दूर रह कर
मोहब्बत मुकम्मल नहीं होती-
तुम जो ज़ुदा
होते मुझ से
तो शिकायत भी होती शायद
तुम रूह हो मेरी
फ़िर शिकवा कैसा
शिकायत कैसी-
तुम नहीं मेरी
बेशक मैं जानता हूँ ये
मगर तुम से मोहब्बत है तो है
कब कहा मैंने…
तुम मिल जाओ मुझ को
हो कर किसी ग़ैर की भी
ग़ैर ना हो जाओ
बस इतनी सी हसरत ही तो है-
एक अबूझ सा सन्नाटा
पसरा है हमारे दरमियाँ
कहना कुछ उन्हें भी है
बहुत कुछ बताना मुझे भी है..
मगर क्या करें..
ख़ामोश रहना मजबूरी है
चुप रहना भी ज़रूरी है.....!!
-
आँखों में मेरी
आज भी नमी बाकी है
तुम्हें ऐतबार हो न हो
तुम्हारा इश्क़ आज भी
मुझ में बेहिसाब बाकी है-
तुम्हें हासिल करने की चाहत के बिना
किस क़दर मोहब्बत की है तुम से
जो तुम मुक्कमल मिल गए होते
शिद्दत मेरे इश्क़ की बेमिसाल हो जाती
-
ख्वाबों में ही सही
जब जब तुम करीब पाया है
धड़कनें दिल की ताल मिलाती रहीं
सांसों की खुशबू रातों रात महकाती रहीं
चाँदनी शब में तेरे होंठों की छुअन गुदगुदाती रही
उँगलियाँ उँगलियों को शिद्दत से थामती रहीं
तुम्हें पाने की यूँ तो कभी चाहत नहीं रही
जिन्दगी बेसबब नगमें गुनगुनाती रही-