जब ढलती शाम में तेरा ज़िक्र रह जाए
तो समझ लेना तुम्हें याद किया मैंने,
रेगिस्तान में खुसकी से नमी हो जाए
तो समझ लेना,,,, तुम्हें याद किया मैंने,
मेरे चेहरे पर पड़ी इन आंसुओं की धार
तुम्हें, तुमसे रुखसत करवातीं हैं
किसी रोज़, मेरे नाम से सिहर उठो
तो समझ लेना.. तुम्हें याद किया मैंने
किसी की मुहब्बत कितनी ही बेमिसाल क्यूं ना हो
तेरे-मेरे मिलन का जिक्र ना हो,
वो मुहब्बत खाक है,,,
कभी फुर्सत में पढ़ी जाए मुहब्बत की कहानी
तो समझ लेना हमारा ही जिक्र है
और जब भी मुस्कुरा उठो अकेले में बैठे,
तो समझ लेना... तुम्हें याद किया मैंने।।
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