Himanshu Kaushal   (अज्ञात The Anonymous!)
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Joined 5 October 2018


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Joined 5 October 2018
3 NOV 2022 AT 8:36

हां, मैं राम नही
मगर राम मेरे अंदर जरूर है,
मैं हनुमान भी नही
छाती नही चीर सकता,

तुम सीता नही,
मगर तुम्हारे अंदर की सीता को देखा है
हर शब्द में तुम्हारे राम को महसूस किया है

मेरे अंदर के राम से उस सीता का मिलन जरूरी है
तुम्हारा-हमारा प्रेम जरूरी है

क्यूं बाकी रह जाए ये कहानी भी,
चलो जरा हटके दोहराएं ये कहानी ही

फिर से मिलाएं राम-सीता की जोड़ी
कर‌ दें शुरुआत कानपुर से ही।

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3 NOV 2022 AT 6:38

बेकसूर इस दस्तूर को क्या कहें,
तेरी इस खूबसूरती को क्या कहें
मै यूं ही नहीं कलम उठाता,
ज़माने को यूं ही नही सुनाता,
तुम सुन कर भी नही सुनते, तो क्या कहें
बोलो हम फिर क्या कहें।

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2 NOV 2022 AT 19:45

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1 JAN 2022 AT 17:01

कोशिश कर रहा हूं तुम्हें धीरे से भुलाने की
पर कमबख्त मेरे वो अपने वादे ऐसा होने नहीं देते।

मजबूरियों के नाम पर बेवफाई कर गयी,
सच बताओ, रातों को नींद भी आती है क्या??

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24 DEC 2021 AT 7:39

A Hope may take you, to the longest journey of your life,
And yes, it is possible that in between of that journey you may meet your soulmate,

And then that journey continues in the same direction without any further hopes...

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21 DEC 2021 AT 7:28

जब ढलती शाम में तेरा ज़िक्र रह जाए
तो समझ लेना तुम्हें याद किया मैंने,

रेगिस्तान में खुसकी से नमी हो जाए
तो समझ लेना,,,, तुम्हें याद किया मैंने,

मेरे चेहरे पर पड़ी इन आंसुओं की धार
तुम्हें, तुमसे रुखसत करवातीं हैं

किसी रोज़, मेरे नाम से सिहर उठो
तो समझ लेना.. तुम्हें याद किया मैंने

किसी की मुहब्बत कितनी ही बेमिसाल क्यूं ना हो
तेरे-मेरे मिलन का जिक्र ना हो,
वो मुहब्बत खाक है,,,

कभी फुर्सत में पढ़ी जाए मुहब्बत की कहानी
तो समझ लेना हमारा ही जिक्र है

और जब भी मुस्कुरा उठो अकेले में बैठे,
तो समझ लेना... तुम्हें याद किया मैंने।।

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11 NOV 2021 AT 4:44

एक बार गिरे थे इश्क के गड्ढे में,
बाहर निकलना बीरबल की खिचड़ी सा हो गया।

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28 OCT 2021 AT 18:00

You might cheat someone, you might fool someone, you might seems to be clever,,,but in reality it doesn't make you cool, smart and awesome.
You just loose the credibility of yours not only in front of him/her, but also in entire zone.

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26 OCT 2021 AT 15:45

यूं दर किनारा कर गये
क्यूं इश्क में हम पड़ गये,
कि चल‌ दिए बिन सोंचे,,
हम कुछ कहने पर भी डरते थे
मरते थे कुछ ऐसे‌ तुम पर
कि आज भी अब कतराते हैं
बहलाते हैं खुद को अब इससे
इश्क हो जाने से ‌घबराते हैं।

और तुम हंसती हो!

चलो कोई नहीं,
मजबूरी का नाम था
इश्क-विशक तो यूं ही बदनाम था
लेकिन अब,
अब कैसे मुकम्मल मुहब्बत को‌ लिखती हो
ऐतराज करती थी पढ़ने में,
अब उम्मीद जमाने के पढ़ने की करती हो
हैरान किया
इस ज़माने ने,।।‌


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25 OCT 2021 AT 18:26

तुलसी और नीम जैसी हो
कभी स्वाद आता है कभी कड़वी भी लगती हो,
तुम आज भी मुझे अच्छी लगती हो।।

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