मुझे मेरे सिवा कोई ना हासिल गुफ्तगू के लिए..
खामोश भी क्या बला का हो गया हूँ मैं अंदर से..।-
बनती नहीं दिल की किसी के साथ..
तन्हा सही, खुश हूँ अपने ही साथ..
छोड़ मैं, उसे बाकी सभी चाहिए हैं..
मुझे तस्वीर भी चाहिए, इक उसी के साथ..
बात चली गुलाब की तो आये याद तेरे लब..
रुखसार भी मचल उठे जबीं के साथ..
दीद मिली भी उस की तो इक गम के साथ..
वो आई खुश नज़र, गैर अजनबी के साथ..
लबों से हाल ए दिल क्या कहूं,जिस दिन रोया मैं..
रो पड़ेगा ये असमां भी ज़मी के साथ..
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साथ मेरे ऐसे रह कर, तुम भी थक जाओगे..
सभी में रह कर अकेले रहना, अब मैंने सीख लिया..।
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भिन्न - भिन्न मायने हैं इस देश में, गिरने के..
रूपये का गिरना..
रूपये के लिये गिरना..
सब से निचला स्तर,
इन दोनों से हालांकि..
'राजनीति' है..।
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इंसान..
थकने लगता है, अकेलेपन से..
और भागने लगता है, अपने ही आप से..
अपने में खो कर,
अपने ही आप को पाने, की इस जद्दोजहद में..
दूर वो खुद से हो जाता है और..
पहुँचता भी, कहीं नहीं..।
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मैं मुक्कमल मिला नहीं, तेरे बाद किसी को..
कि करते हैं बात किसी से, याद किसी को..
देख के तुझे,कसम से आता हुआ भूल गये..
आँखो के आगे, रहे नहीं याद संवाद किसी को..
नाम था लिखा किसी का ओ, रह गया भूखा कोई..
दाना था किसी का, ज़बाँ पे आ गया स्वाद किसी को..
इस की फितरत यही,भला ये कब किसी का हुआ..
सब खुद होते हैं,वक्त करता नहीं है बर्बाद किसी को..
तेरे मुड़ते ही मुरझा गये, आखरी मुलाकात के फूल..
ना छोड़ा पानी तूने आँख में, ना दी ही मैंने खाद किसी को..
तीर्थो के राजा, ने समां कुंभ का यूं रंगा..
सभी ने गाया राग प्रयाग, रहा ना याद इलाहाबाद किसी को..
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वहाँ पहुँचे नहीं, जहाँ पहुँचना चाहिये था हमें..
ख्वाब होश ओ हवास में देखना चाहिये था हमें...
सिसक रहे हैं अब बैठ तन्हाई में, जब जा चुका है वो..
ओ हँस के थे लौट आये वहाँ,जहाँ रो देना चाहिये था हमें..
हक़ हमारा ले रहा था दूसरा,ओ हमें खा रहा था ये गिला..
अमाँ बोले क्यों नहीं,जहाँ बोलना चाहिये था हमें..
हर गिला उन से जो खुल के कहा,अफसोस ये भी होता रहा..
बोलने के पहल सोचा क्यों नहीं,जहाँ सोचना चाहिये था हमें..
हर एक शख्स चला गया ओ फक्त मैं ही अकेला रह गया..
रोका क्यों नहीं अपनी एक 'अना' को,जहाँ रोकना चाहिये था हमें..
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