जो मुक़म्मल ही न हो, वो ख़्वाब सजाये बैठे है
अपने शहर में तेरे मिलने की आस लगाये बैठे है-
जब बिछड़े हुए हमें
एक अरसा हो जाएगा
मैं आऊंगा मिलने तुमसे
और बताऊंगा तुम्हे...
अपने जाने का सबब
मेरा जाना ज़रूरी तो नही,
मगर मुनासिफ ज़रूर था-
बढ़ रही है तीरगी
जुगनू भी अब मदहोश है
मुसाफिर भी है रुक चुके
यह आखिरी ही मोड़ है
दुख रही है आँख अब
बह चली उम्मीद सारी
अब ख्वाब भी है सो चुके
यह रात सोती क्यो नही?
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तेरी गली से निकल आये थे एक रोज़, बिना तुझको पुकारे
क्या खबर थी हमें, उस रोज ही कयामत आ जायेगी-
वो लड़की बहुत घबराती है भीड़ में मुस्कराने से
लगता है समाज के हालात से वाकिफ है वो भी !!-
एक दौर था, जब तेरी हर तस्वीर भी बड़ी संभाल कर रखता था
अब तुझे देखकर भी, तेरी याद आती नही मुझको-
मैं तो उसे गुनाहगार भी न कह पाया......
बड़ी मासूमियत से किया था उसने इक़बाल-ए-जुर्म अपना-
खुद पर गुरुर करने का, कोई बहाना तो दे जाना
तू जाते-जाते अपना कोई, राज़ तो मुझको देजा ना
:)-
इश्क में,
तेरा बेवफा हो जाना ही बेहतर था ,
वरना,
मैं अपनी बर्बादी का इल्ज़ाम किसे देता !!-