मानो रोज़ ऐसे लगता है जैसे कुछ हार रहा हूं इस जिंदगी में,
लेकिन साथ में एक ऐसे दोस्त को पाया जो महसूस कराता है कि खड़ा हूं मै हमेशा साथ,
ए - दोस्त शुक्रिया मेरी इस बेरंग सी जिंदगी में आने के लिए,
गमो के बादल ऐसे छाए हुए मूझपे, तब हमेशा तुमने आ कर अपनाया मुझे,
और उस वक्त हमेशा मुझे हसाने के लिए शुक्रिया,
मेरी इस बेरंग सी जिंदगी में एक फरिश्ता से बन कर आए तुम,
आ कर मुझे समझाया इस जिंदगी में हर कोई लोग हमारा समय पाने के लिए काबिल नहीं,
कभी किसी ने हमसे हमारी खैरियत तक नहीं पूछी,
और तुम्हारी हद से ज्यादा मेरी परवाह करनें के लिए शुक्रिया,
जब जब मुसीबत आयी मेरे ऊपर,
तुमको हमेशा साथ में पाया है मैंने
मेरी इस नीरस सी जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए शुक्रिया,
जब कभी खुद को खो दिया था मैंने,
उस समय मुझको मुझसे मिलाने के लिए शुक्रिया,
मेरी जिंदगी में आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।-
जीना फ़िलहाल है
Born on 22 sep❤️
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कभी कभी कोई आता है,
अपनापन दिखाता है,
अच्छी अच्छी बातें करता है,
और जब उससे अटैचमेंट हो जाती है,
तब एक दम से वो छोड़ जाता है,
ना वज़ह पता चल पाती है,
ना कारण पता चल पाते है,
अनजाने से बेबस से बैठे हम अपने आप को पाते है।-
एक मुद्दत बाद आज फिर से
इस कलम को थामा है,
एक अदब से बेचैनियों को
परेशानियों से घिरा खुद को पाया है,
जिंदगी की,और मेरी बढ़ती आशाओं से
मैने अपने आप को डरा हुआ पाया है,
वक्त की रफ्तार भी तेज है,
रास्ता भी नया और सफर भी है ये लंबा,
लेकिन मैने तो ख़ुद को
वहीं ज़मीन पे बैठा हुआ पाया है,
उम्मीद अब भी लोगो से रहती है,
आगे बढ़ने की जिद्द भी पीछा नहीं छोड़ती है,
उलझने भी बहुत है और ये मुसाफ़िर भी तन्हा है,
गलतफहमियां, परेशानियां भी
मुझसे कहीं आगे निकल गई,
सुकून..... सफ़र में शायद कहीं पीछे छूट गया है।-
एक दिन इस असमंजस सी उलझन से निकलकर,
मुझे भी वो खुला आसमां देखना है,
एक दिन दिल से खुश हो कर,
मुझे चैन से मुस्कुरा कर सब देखना है,
एक दिन सिर्फ जिम्मेदारी निभा कर नहीं,
मुझे हक भी जता कर देखना है,
एक दिन कहानियां सुन कर नहीं,
खुद एक कहानी बन जाना है,
एक दिन बोल कर नहीं,
ख़ामोशी से दिन निकालना है,
एक दिन आंखों में आसूं नहीं,
चैन से नींद लेनी है,
हां शायद आज मुमकिन नहीं,
लेकिन कल शायद सुकूं की नींद मिल जाए।-
खुद से मुलाक़ात करने जब भी जा रहा होता हूँ,
पता नहीं क्यूं हर बार कोई डर सा बीच में आ रहा होता है?
लिपट कर मुझसे, छू कर मुझे, मेरे सुनहरे सपनों को खा जाता है।
यह डर सच में बहुत भयानक है,
कभी कभी तो मानो किसी खूंखार पिशाच-सा लगता है,
अपने नाखूनों से नोंचता है यह मुझे,
बुरे सपने से भी ज्यादा बुरा ये दिखता है।
क्या है यह, क्यों है यह, कुछ समझ में नहीं आता है, जैसे खून को खींच कर मेरे शरीर से मुझे निर्जीव सा करता जाता है।
भीड़ में भी घेर लेता है मुझे एकांत में भी लिपट जाता है,
मेरी हसीं ,मेरा सुकून छीन कर मेरे मार्ग में पीड़ा के कांटे बिछाता है।
भय के आलिंगन में सिमटा मैं न चीख पाता, न रो पाता हूँ,
इस भय से मुक्त हो जाऊँ जल्द ही, मैं अब बस इतना ही चाहता हूं।-
जरा सुनो,
इधर आना, मेरे पास बैठ जाना कुछ देर,
थोड़ा उदास भी हूं और मन सा भी नहीं लग रहा है,
टूटा नहीं हूं, लेकिन शायद थोड़ा बिखर सा गया हूं,
पर पता नहीं कुछ भी अच्छा सा महसूस नहीं कर पा रहा हूं,
देखो ना, मेरे चारों तरफ़ अंधेरा सा है शायद
सूरज आता है, लगता है रोशनी नहीं है शायद,
कुछ थक सा गया हूं जिंदगी की इस भाग दौड़ में,
नहीं नहीं तुम गलत समझ रहे हो शायद,
मैं हारा नहीं हूं बस धीरे धीरे कहीं जा रहा हूं,
देखो ज़रा उधर, वहां एक क़िताब रखी है शायद,
उसमे दबा रखा है एक ख़त मेरा,
अक्सर कुछ कुछ लिखता हूं और फिर कहीं छुपा देता हूं,
पढ़ो, देखो लिखे है मैंने कितने सारे सपने,
अपने सपने, मेरे अपने सपने,
कितनी अधूरी ख्वाहिशें जो शायद अब कहीं जिंदा भी नही है,
कुछ खोखले सपने, कुछ लोग जिन्हें अपना मानता हूं
धीरे धीरे समेटने की कोशिश कर रहा हूं,
अरे अरे तुम्हारी आंखों में अश्रु
नहीं नहीं रोइए मत, पूछ लो इन्हे,
अभी तो बहुत से खत है मेरे
जो कहीं दबे रखे होंगे
पढ़ेंगे फिर कभी उन्हें फुरसत के लम्हों में,
अच्छा तो अब तुम जाओ हम कुछ कहीं दबे हुए खत ढूंढ लेते है,
और जाते जाते ये दरवाज़े बंद कर जाना
क्यूंकि रोशनी आती है वहां से
तो ऐसा लगता है जैसे मजाक उड़ा रही हो मेरा..🥹-
पहले आप से तुम,
और तुम से आप,
फिर कुछ समय पश्चात
तुम से तू और साथ में अपनेपन का एहसास,
ये सफ़र इतना मुश्किल न होता,
अगर हमने अपना सर्वोत्तम न दिया होता।-
हाय ये काली घनी लंबी रात....
ऊपर से तेरी ये खामोशी...
अकसर दिल जलाया करती है..
ना जाने क्यूं सब खफ़ा से हमसे होने लगे है..
दिल में जो बातें है बस दिमाग को कह पाते है..
एक तो ये सालो का अकेलापन..
फिर तेरा यूं साथ हो कर भी साथ न होना..
अकसर जान सी हमारी निकाल दिया करता है..
अपना कहते थे जो हमे, गैर उनके लिए अब होने लगे है..
हक़ अब वो जताते नही, दर्द हम बताते नहीं..
जिंदगी बस इसी कशमकश में निकल रही है..
ना जाने कब कोई एक पल को अपना सा लगता है..
और अगले पल ही पराया बना जाता है।।-