जरा सुनो,
इधर आना, मेरे पास बैठ जाना कुछ देर,
थोड़ा उदास भी हूं और मन सा भी नहीं लग रहा है,
टूटा नहीं हूं, लेकिन शायद थोड़ा बिखर सा गया हूं,
पर पता नहीं कुछ भी अच्छा सा महसूस नहीं कर पा रहा हूं,
देखो ना, मेरे चारों तरफ़ अंधेरा सा है शायद
सूरज आता है, लगता है रोशनी नहीं है शायद,
कुछ थक सा गया हूं जिंदगी की इस भाग दौड़ में,
नहीं नहीं तुम गलत समझ रहे हो शायद,
मैं हारा नहीं हूं बस धीरे धीरे कहीं जा रहा हूं,
देखो ज़रा उधर, वहां एक क़िताब रखी है शायद,
उसमे दबा रखा है एक ख़त मेरा,
अक्सर कुछ कुछ लिखता हूं और फिर कहीं छुपा देता हूं,
पढ़ो, देखो लिखे है मैंने कितने सारे सपने,
अपने सपने, मेरे अपने सपने,
कितनी अधूरी ख्वाहिशें जो शायद अब कहीं जिंदा भी नही है,
कुछ खोखले सपने, कुछ लोग जिन्हें अपना मानता हूं
धीरे धीरे समेटने की कोशिश कर रहा हूं,
अरे अरे तुम्हारी आंखों में अश्रु
नहीं नहीं रोइए मत, पूछ लो इन्हे,
अभी तो बहुत से खत है मेरे
जो कहीं दबे रखे होंगे
पढ़ेंगे फिर कभी उन्हें फुरसत के लम्हों में,
अच्छा तो अब तुम जाओ हम कुछ कहीं दबे हुए खत ढूंढ लेते है,
और जाते जाते ये दरवाज़े बंद कर जाना
क्यूंकि रोशनी आती है वहां से
तो ऐसा लगता है जैसे मजाक उड़ा रही हो मेरा..🥹
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