तारा नही रहा काफ़िर खुदको इक तारे का भूत कर चुका है
रोशनी अब पहुँची है आंखों तक वो तो सालों का मर चुका है
उसका सर्दी से काँपना लोगों को अब टिमटिमाना लगता है
टूटने की हसरत है बस ऊंचाई से तो जी कबका भर चुका है
इर्द गिर्द घूमते थे सभी, गर्माहट उसकी भी जब कम ना थी
दुत्कारते है आज वो आसमां, जिनसे होके वो गुजर चुका है
पूछता था कैसा होता होगा किसी पृथ्वी के करीब आना
अब जानके अंजाम मुलाकात का वो डर से सिहर चुका है
वो बस एक अतीत है जिसे अब कोई देखने वाला नही
देखे भी क्यो जब हर शख्स यहाँ अतीत से उबर चुका है
#काफ़िर
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