क्यों सीमित ही यह दृश्य है
ताकता हूं मेघ इतने खिल उठे हैं आज कितने
मंदाकिनी के सिरे पे अनंत तारे गिन रहा हूं
(कि न देखता हूं आकाश को, न असिमित नभ के प्रकाश को)
कि व्यर्थ ही यह आस थी सिर्फ शून्यता की तलाश थी
छोड़ अनंत विस्तार, मैं सूक्ष्म तारे गिन रहा था
इस असीमित रिक्तता की पहचान -मैं अभ भी क्यों न देखता हूं
कि इस शून्यता के स्वभाव में, मैं संभावना ही ढूंढता हूं
जो विद्यमान है सीमित ही स्थित- स्थिर खड़ा है
संभावना की रिक्तता में, मैं शून्य को ही खोजता हूं
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