रहज़न नींद के मिन्नतों से पिघलते नहीं ।
ये ख़्याल है या जुगनू दिन में निकलते नहीं।
शायद ये कमबख्त दिल पत्थर होने लगा ,
वो चार लोग अब मुझे उतना खलते नहीं।
ख़्वार में वो शख़्स कहीं नज़र नहीं आए ,
जो कहा करते थे हम कभी बदलते नहीं।
कुछ तो ज़रूर चुभता है ख़राब दिल में,
आँख से आँसू यूँ ही तो निकलते नहीं।
उदास बैठे हैं अपने हाथों आग लगाकर,
तुम्हें क्या लगा पानी के दिए जलते नहीं।
चाँद की बेरुखी , सितारें भी नाराज बैठे,
बचपन के यार मेरे साथ कहीं चलते नहीं।
दम घुटा कितनों का बाजुओं में जकड़कर ,
बस इसी डर से तो लोग गले मिलते नहीं।-
बड़ी उम्मीद से मन्नत का एक धागा बाँध रखा है,
हे नाथ मेरे ! मैंने तुमसे तुम ही को मांग रखा है ।
जब से सुना है कि ये हवाएं तेरे दर तक जाती है,
मैंने सारी फ़रियादों को अब हवा में टांग रखा है ।
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मुझे मुझसे मिलाता है,आइने को कमाल लिख दूँ ,
चलो चुभते वरक़ पर फक़त कुछ सवाल लिख दूँ।
जाने कब से ठहरे है कुछ बादल मेरी आँखों में ,
अजीज पूछ ले तो बेजार दिल का हाल लिख दूँ।
खटकता है ख़्वाबों का मेरी छत पर यूँ टहलना ,
ऐ ज़िंदगी ! सोचती हूँ तुझे मैं एहतिमाल लिख दूँ।
सूरज के बूझते ही भटक रहे मुसाफ़िर जंगलों में ,
क्यों ना मैं जुगनुओं को ही अब मशाल लिख दूँ ।
सहरा बह चला , बिजलियाँ गिर पडी समुंदर में,
क्या मैं इन बे-मौसम बारिशों को बवाल लिख दूँ ।
सारे रंग उड़ा ले गई हवाओं में घुली लाल स्याही,
वो शख़्स पूछता है आसमाँ का रंग लाल लिख दूँ।-
सरफरोश हो उठे सितारें कि अब साथ छूटने को है,
सफ़र आख़िरी है टूटते तारे से दुआ न माँगा कीजिए।
लो सदियाँ बीत गई लौटी नहीं कश्तियाँ किनारों पर ,
इन मासूम लहरों से आब- ए- रवाँ न माँगा कीजिए।
कुछ सीने में रहा अनकहा,दर्द रगों में खून सा बहा,
देकर ये दर्द की उधारी, अब दवा न माँगा कीजिए ।
फ़ूलों पर मेहरबान हो गई,तितलियाँ कुर्बान हो गई,
वीरान हुए बगीचों से कोई बागबां न माँगा कीजिए।
वो दीपक था जिद्द पर अड़ा ,तूफ़ानों से खूब लड़ा,
जो बुझ जाए दरिचों से बैरी हवा न माँगा कीजिए।
ये दुनिया शतरंज का खेल ,कोई पास तो कोई फेल,
अगर हार गए बाज़ी तो यूँ बद्दुआ न माँगा कीजिए।
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सारे जहाँ से अच्छा मेरा भारत, विश्व का दिगदर्शक बना जन-गण यहाँ,
क्रांति का उद्घोष करता तृण-तृण यहाँ, स्वतंत्रत भारत का प्रण भी यहाँ।
माँ भारती की एक पुकार पर चला आता सिंह सा दहाड़ता हर वीर,
कटे शीश तो क्या राष्ट्रभक्ति का ज्वार लेकर लड़ता है धड़ भी यहाँ।
"जय-जवान, जय-किसान, जय-अनुसंधान" का स्वर भी यही भारत,
अनेकता में एकता की नींव, "वसुधैव कुटुम्बकम" की जड़ भी यहाँ।
इसी धरा के आँचल में सदियों से जड़े जा रहे हैं रत्न अनेक बलिदानी,
क्या धरा, क्या अंबर, क्या शिला, क्या पाषाण, पूज्य है कंकड़ भी यहाँ।
मिट्टी की खुशबू बिखराता सावन, सिंदूरी शाम लाता वसंत मनभावन,
प्रवीरों के सामने दम तोड़ चुका परतन्त्रता का चीर पतझड़ भी यहाँ।
यहाँ प्रेम की धारा,माँ गंगा का किनारा, यहाँ संस्कार ही आधार हमारा ,
स्वाभिमान की रक्षा के लिए हुआ पग - पग पर भीषण रण भी यहाँ ।
पग छूती हिंद की उत्ताल तरंगे, मस्तक पर अभिषेक करता दृढ़ हिमालय,
धन्य है धरा शिरोमणि भारतभूमि, धन्य माटी का कण-कण भी यहाँ।-
गहराई को हमेशा गम रहा कि उसे किनारा नहीं मिलता।
साहिल बैचैन रहा कि उसे लहरों का सहारा नहीं मिलता।
उम्र-ए-गुरेजा में खुद को ढूँढने की तफ़तीश जारी रखी है,
जो मिला वो कोई और है,अब वजूद हमारा नहीं मिलता।
शह-सवार सा जाने कब, कैसे गुजर गया नादान जमाना,
समझदारी के पीछे छिपा बैठा दिल आवारा नहीं मिलता।
हकीकत जानने पर आब-ओ-ताब में कोई कमी ना होती,
अफसोस इच्छा पूरी करने वाला टूटता तारा नहीं मिलता।
सफर में कदम रोकने को खुद की परछाईं पुकारती रही,
नहीं सुना जबतक जिंदगी से जवाब करारा नहीं मिलता।
जो हुआ सो हुआ अब तो जिंदगी जीना सीख ले हिमांशी,
हर कदम पर याद रखना गुजरा वक़्त दुबारा नहीं मिलता।-
आपका उत्कृष्ट लेखन और हृदय प्रेम का दर्पण,
मन की गहराइयों में डूबकर करते भाव अर्पण।
नीले-नीले अंबर में आप चमकीला ध्रुव तारा हो,
जो कर दे रौशन अँधेरी रात आप वो सहारा हो।
मीठी-मीठी बातें करते, बातों में मिश्री सी घोली,
शंकर से भोले मेरे भाई की बहनें बड़ी बड़बोली।
भाई बड़े प्यारे जैसे खट्टमिट्ठा आम का अचार,
करके थोड़ा तंत्र-मंत्र आपकी नज़र दूँ मैं उतार।
ईश्वर से दुआ है हम आपको करते रहे यूँ ही तंग,
आपके जीवन में बहती रहे उमंग की ढेरों तरंग।
आपके चेहरे पर लंबी वाली मुस्कान हो हर दिन,
भाई आपको मुबारक हो, हैप्पी वाला जन्मदिन।-
नील गगन में सपनों के पंख लगाकर ऊँचा उड़ना तुम,
इकाई से इस जीवन में दहाई के अंक सा जुड़ना तुम।
जो पुकारे धरा सा बैचेन मन तो बूँद-बूँद बरसना तुम,
अंबर में बिजली सा चमकना,बादल सा गरजना तुम।
गगन के सितारे छूना,अंतरिक्ष परिधि पर चलना तुम,
ना बदलना कभी,स्वयं के बनाए साँचे में ढलना तुम।
राहों में मिल जाए तूफान तो मुट्ठी में कैद रखना तुम,
जुबान पर मुस्कान रख खुशियों के पल चखना तुम।
बलखाती लहरों के समुंदर से नौका बन गुजरना तुम,
तितलियों के रंग सा रोज निखरना,रोज संवरना तुम।
कण-कण पावन हो शिव की गंगा बनकर बहना तुम,
सीधे-सादे से मन के भीतर चंचल मन सा रहना तुम।
अपने प्रेम से विष भी स्वयं सा ही अमृत करना तुम,
सूर्य के तेज ताप से पिघले हिम तो साँझ बनना तुम।-
संघर्षमय सम्पूर्ण जीवन,पग-पग में स्वागत करता रण,
एक पल जीते जीवन,मृत्यु द्वारचार करती अगले क्षण।
विषम ऋतुओं की मार या हो चढ़ा साहूकार का उधार,
पीले पात सा झरता मनोबल,तुम झेलते वज्रों के प्रहार।
सलोने स्वप्न बुनते खेतों में देख पीली सरसों की रंगोली,
इसबार रचेगी हाथों में मेंहदी,सजेगी बिटिया की डोली।
जब दीपक अट्टहास करता,रात प्रतीत होती अमावस,
अंधकार में निगल लेता अवसाद,बहा ले जाती पावस।
अंत में क्या पाया तुमने धरती में शोणित बीज बोकर?
सींच दिया जल नेत्रों का, रिक्त हो अश्रुओं को खोकर।
ज्येष्ठ में ओढ़ी धूप,बिछाकर सो गए टपकता आसमान,
गरल पय भी पी लिया,खा गए आघात समझकर धान।
कौन लोग रीढ़ की हड्डी तोड़ क्षणभर में भर लेते कोष,
स्वयं कलियों से रंग उड़ा, श्वेत पुष्पों को मढ़ देते दोष।
है ये कैसा विधान,थाल सजे सबकी,भूखा रहे किसान?
यदि अन्नदाता का नहीं मान तो देश कैसा कृषि प्रधान?-
विलक्षण प्रतिभा के धनी,आपकी कलम में नव उद्गार,
रगों में रक्त बन बहते देवभूमि की संस्कृति व संस्कार।
उदित सूर्य समान दिप्तीमान होती विचारों की आभा,
सायली छंद हो या दोहा हर विधा में उज्ज्वल विभा।
आप स्वयं को "शून्य"कहकर करवाते अपनी पहचान,
एक दिन शून्य सा महान होगा जगत् में आपका नाम।
ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से आया गुनगुनाती हवा का संदेश,
इस शुभ दिवस पर गूँज उठे पंछी, झूम उठा परिवेश।
आप पर सदा बना रहे ईश्वर का अनंत स्नेह आशीष,
दिन दूना रात चौगुना फलित हो आपको शुभाशीष।
आपको अवतरण दिवस की बहुत-बहुत सारी बधाई,
झोला हम ले आएँ,आप ले आइए केक और मिठाई।-