"इंसान कमाता है सुख पाने को
दर दर भटकता है धन पाने को
मिट्टी मिट्टी हो जाना है
एक दिन सब खो जाना है
भूख बड़ी पापी है इस जर्जर की
खुद को मिटाना है इसे मिटाने को
इंसान कमाता है सुख पाने को
दर दर भटकता है धन पाने को
छोड़ के आराम की सैय्या को
जाता है आराम कमाने को
उमर हो जाये लम्बी
दिन रात वो खाता है
खाते खाते भी
एक दिन बूढ़ा हो जाता है
भूख बड़ी पापी है इस जर्जर की
खुद को मिटाना है इसे मिटाने को
सोता है सपने देखने को
भूल के सपना उठ जाता है
इंसान कमाता है सुख पाने को
दर दर भटकता है धन पाने को
मिट्टी मिट्टी हो जाना है
एक दिन सब खो जाना है "
_"हिमांशी...✍️"-
Don't relate every quote with my life .
"कुछ देखा है कुछ अनुभव किय... read more
"इस अलगाव भरे जीवन में
तूफान बहुत आते है
किससे किसका क्या उजड़े
ये तो रब ही जाने है
है हमदर्द नही कोई यहाँ पर
सब खुद ही सहते जाना है
है रंग नही कोई यहाँ पर
सब खुद ही चुनते जाना है
बीते दिन बीते राते
जग में है सब सूनी बाते
भेद है सब तेरे अन्दर
दुख-दर्द समिट कर है खंजर
छलकते नही है आँसू अब
मुस्कान भरी है चेहरे पर अब
पहचान गये है जीवन को अब
शिकवा नही किसी से अब "
-"हिमांशी----✍️"
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कभी हाल दिल का,बायां कर भी दू गर
सुनेगा कौन ,सोचकर मन रूक सा गया
तस्वीरो से आँखे बात कर लेती है जब भी
टूटकर राज बिखर जाते है उसी वक्त पर
मैं सा कोई नही है जहां पर
किसको हमसफर कह दू यहाँ पर
पंक्षी का है गगन जहां पर
भला मेरा सफर है कहाँ तक
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" तुझे मैं याद करूँ
या तुझे मैं भुला दू
सपनो में रोज आते हो
तुझे मैं याद करूँ
या तुझे मैं भुला दू
बातो बातो में खयाल
तेरा आ जाता है
कभी-कभी तुम रहते हो
कभी-कभी ओझल हो जाते हो
ऐसा तेरे-मेरे दरमिया है क्या
तुझे मैं याद करूँ
या तुझे मैं भुला दू
चलती फिरती है रोज ज़िदंगी
कुछ मोड़ पे ठहरते है कदम
कुछ मोड़ पे बिखरती है आँखे
तुझे मैं याद करूँ
या तुझे मैं भुला दू
अनमोल है वादे
अनमोल है साँसे
वादे करके जो मुकर जाये
बेमोल है वो रिश्ते
तुझे मैं याद करूँ
या तुझे मैं भुला दू "
-"हिमांशी...✍️"
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"ढेहरी लांघ गये"
जाने किस भूल में,
हम ढेहरी लांघ गये
मिलेगी खुशियाँ दामन में
हम घर से निकल गये
सारे रिश्तो को छोड़ पीछे
तन्हाईयो को अपना कह गये
जाने किस भूल में
हम ढेहरी लांघ गये
ना पता रस्ता ,
ना मंजिल थी मुकम्मल
मिलेगी खुशियाँ दामन में
हम घर से निकल गये
जाने किस भूल में
हम काँटो पर चल गये
सपने होगे पूरे,उम्मीद में
हम आधी उम्र गुजार गये
मिलेगी खुशियाँ दामन में
हम घर से निकल गये
जाने किस भूल में,
हम ढेहरी लांघ गये-
"ज्यादा मिले तो बन्धन हो जाता है
प्यार,कम मिले तो तन्हा हो जाता है
ये कैसा नशा है जिसे चढ़ जाता है
वो खुद-ब-खुद रंगरेज हो जाता है"
-" हिमांशी...✍️"
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" जख्म लिखते-लिखते
कब दर्द लिख दिया
पता ही नही कब मैंने
अपना ही जिक्र लिख दिया
इन खूबसूरत सी आँखो में
आँसुओ का सैलाब है
इस मुस्कुराहट में ना जाने
कितने गमो की तादाद है
खैर छोड़ ही देते है ये
किस्सा कहानीकार पर
अपनी लकीरो को
बदलने की आस अब कहाँ है "
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"जाये तो कहाँ जाये हम
गमो को बहौत मोहब्बत है हमसे
ना ठौर ना ठिकाना ना घड़ी ना पैमाना
कब कितना गम मुझसे मिलने आ जाये बेचारा
इनसे मिलना इनसे टकराना
बस यही है मेरी जिनदगी का फसाना
इक जाये इक आये इक ठहरा ही रहे
कोशिश तो खुँशियो से मिलने की थी
कोशिश तो कोशिश ही रह गयी "
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" मैंने तो सघर्ष देखा है
और उसी का सुख देखा है
मेरे अपनो में कहाँ छाव थी
मैंने तो गैरो का अपनापन देखा है
बदलती तस्वीरो में बहुत से रंग देखे है
जितना गुमान था ,सब मिट्टी हुआ देखा है
फलक तक जाऊ ,डोरियां किसे बनाऊ
डोरियो में गाँठ बेहिसाब देखा है
खुँशियो की चाह में,
गम की ज़िंदगी काट ली
अब ना मिले गम तो,
ज़िंदगी को गुमनाम देखा है "
-"हिमांशी....✍️"-
"रबर के मिटाने से जो मिटती नही
नींद पर सुलाने से जो बिसरती नही
अंतः पटल पर जो छवि अकिंत है
पत्थर की लकीर सी जो अडिग है
आँसुओ की धार से धुंधलाती नही
शब्दो के बाण से बिखरती नही
अंतः पटल पर जो छवि अकिंत है
पत्थर की लकीर सी जो अडिग है
बस वक्त है वो ताब़ीज ,
जो बनती है ताबीर
नही है कोई जोड़ इस धरा पर
जो वक्त से पहले मिल जाये कोई हल"
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