मेरा घर कहाँ है।
पैदा हुई तो पापा ने गले से लगाया
घर में लक्ष्मी आई है सबको बताया।
माँ खुश तो थी बस कुछ अधूरा सा था
औरों की आँखों का सपना टूटा जो था।
पढ़ लिखकर जब हुई थौड़ी सी मैं बड़ी
सबकी सोच बस एक बात पे ही अड़ी।
बेटी है, ये तो एक दिन पराई हो जाएगी
किसी और के घर जाकर वहाँ की शौभा बढ़ाएगी।
फिर माँ,पापा और सबने बस एक ही बात समझाई
तेरा घर तो कोई ओर है,बस कर अब ये पढ़ाई।
शादी करके जब पहुँची मैं मेरे कहे जाने वाले घर
सबकी नज़रें थी मुझपे और मेरे अंदर था एक डर।
किसी ने मुझे दिल से अपनाया और प्यार भी जताया
अरे ये तो पराए घर की है,किसी ने ये कहके रुलाया।
बस एक ही सवाल मुझे बार बार पूछना सबसे यहाँ है
अगर हूँ मैं न यहाँ की,न वहाँ की तो आखिर मेरा घर कहाँ है।
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