मैं अकेली थी, वो घिनौने दरिंदे थे चार,
चीखी चिल्लाई भागने की कोशिशें की हज़ार,
मुंह दबोचा मेरा हाथ जकड़ लिए हुईं मैं लाचार,
मगर आंखे खुली थी मेरी बह रहे थे बस आंसू अपार,
मेरे असहनीय दर्द पर हंसे वो किया मेरा बलात्कार,
मैं खत्म सी हो गई उस पल,चारो ओर था बस अंधकार,
पास था मेरे कोई नहीं, यादों में था मेरा प्यारा परिवार,
तरस अब भी नहीं आया मुझपर, उनके और ख़तरनाक थे विचार,
काम निकल चुका था उनका, मैं अब उनके लिए थी बेकार,
पेट्रोल छिड़क जला दिया अब मुझे, आत्मा दी थी पहले ही मार,
मैं अब जा चुकी हूं , बेकसूर होते हुए भी लिया इतनी बड़ी सजा का भार,
कोई बता सकता है मुझे क्यों हुआ मेरे साथ इतना भयानक व्यवहार,
जो हुआ उसे कोई बदल नहीं सकता माना, मगर क्या नहीं है मुझे इंसाफ का भी अधिकार,
कुछ ना कर सके मेरे लिए तो, मगर सुननी होगी मेरी तड़पती आत्मा की अंतिम पुकार,
अब करो कुछ ऐसा के आगे कोई नारी ना हो ऐसी हैवानियत का शिकार,
दो सज़ा ए मौत इन इंसानी दरिंदो को, लटका दो या फिर जला दो भरे बाज़ार,
ताकि रूह डरे हाथ कांपे इन जैसे पापियों के, कुछ तो सुरक्षित हो भविष्य में औरत का किरदार
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Insta I'd - @himmotheone
सबसे पहला घर-माँ
इन परेशानियों के बीच सुकून है
पाना,
खुश होने का नहीं मिल रहा कोई
बहाना,
हां है एक नुस्खा शायरा का, करो फिर
बताना,
भूल कर सब, दो पल माँ के बस गले लग
जाना,
चाहे बताओ उनको सब, या कुछ मत
बताना,
याद नहीं रहेगा कुछ भी, सब लगने लगेगा
सुहाना,
अपनाया है इसे मैंने, अब इसको तुम भी
अपनाना,
सुकून चाहिए, बस अपने सबसे पहले घर लौट
आना।-
हां अब उसका "PUBG" से हो जाया करता है...
पहले मुझसे हुआ करता था "TIME-PASS"...-
खुद का दर्द भूल कर मुझे मरहम लगाती है...
वो मेरी मां है साहिब मुझे बेमतलब चाहती है ।-
सब कुछ, कुछ ना कुछ पाने को किया जाए ये ज़रूरी तो नहीं...
उस पाने में, उन अनगिनत अनदेखी मुस्कानों का स्वाद कहां-
किसी मर्ज को दोष दू या फिर इस साल का है ये कसूर,
जो भी इंसान है दिल से प्यार वो हो रहा है बस दूर।
क्या नहीं सकते हम इस साल को अपने जीवन से हटा,
जो भी हुआ है विनाश क्या उसे हम नहीं सकते मिटा।
जो मुमकिन है, बन पड़े बस करो, और बदल दो ये साल,
इसमें भरी है अधूरी ख्वाहिशें, बहुत काश, बहुत से मलाल।
बहुत सा प्यार, बहुत से यार, बहुत परिवार उजड़ गए है,
शायद हुई है जो पहल हमसे गलतियां वो भुगत रहे है।
ऐ खुदा तुम चाहे मेरी ज़िंदगी का एक पूरा साल छीन लो,
पर दरखास्त है इस साल जो रही है ये बर्बादी रोकलो...
ये बर्बादी रोकलो...-
अब मैं क्या कहूं इस वक़्त पर नहीं चलती किसी की ...
आज दुनिया को अलविदा कह गए हमारे प्यारे ऋषि जी।
4/9/1952 - 30/4/2020-
एक मासूम ने आकर मुझसे कहा, ऐ कलमकार लिखो कुछ ऐसा के मेरी मुट्ठी में हो सारा जहां...
दूजे ही पल मैंने मेरी कलम उठाई और उसकी एक हथेली पर पिता दुजी पर मां लिखा।-
उसने कहा मैं लड़ तो लेता इस मर्ज से ये लड़ाई
मगर आज मुझे मेरी मां बेहद और बहुत याद आई
उनसे मिलने को उधेड़ दी मैंने सांसों की सिलाई
के जब गई वो कर ना पाया था मैं उनकी विदाई-
पिछले गुरुवार को गुज़र गई थी माँ, इरफ़ान ने अगला गुरुवार नहीं देखा...
मैंने इस जमाने में, "Dear Irrfan" आपसा बेटा और माँ-बेटे का ऐसा प्यार नहीं देखा...
Sometimes_shayara♥️-