Himani Dixit   (हिमानी)
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स्याही... पन्ने.... और कुछ अल्फाज़, कुछ जज्बात❣️
Follow there on insta {tales_by_himani}
Joined 5 July 2018


स्याही... पन्ने.... और कुछ अल्फाज़, कुछ जज्बात❣️
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10 JAN 2022 AT 23:47

ये दर्द मिट गया तो फिर?
ये ज़ख्म सिल गया तो फिर?

मैं तितलियों के शहर में रहूं तो , मुझको फिकर है
वो फूल जो खिला नहीं , वो फूल खिल गया तो फिर?

तुझे भी कुछ नहीं मिला , मुझे भी कुछ नहीं मिला
तमाम उम्र के लिए , ये दर्द मिल गया तो फिर?

मैं इसलिए तो आजतक , सवाल भी ना कर सकी
अगर मेरे सवाल का जवाब मिल गया तो फिर?

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18 OCT 2021 AT 22:43


परिश्रम करती स्त्री,
स्वप्न संजोती स्त्री...
हां में हां मिलाने से इतर
सोचने समझने और,
खड़ी होकर बोलने वाली स्त्री...
पुरुषों से परे,
अंकित करती अपने पदांक...
मांग में सिंदूर की जगह,
जिसे भाती है
फटी एड़ियों के बीच धूल...
सादगी से भरी,
परम जटिल स्त्री....

कुंठित हर उस पुरुष को खटकती है
जो बाहर से सजीला और,
अंदर से जहरीला है।



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25 SEP 2021 AT 22:01

Some of our scars,
were painted with words
known as 'poetry'

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9 MAY 2021 AT 17:28

माॅं अकेली माॅं नहीं उसमें माॅं-सी, नानी, दादी, परदादी हैं,
कभी-कभी लगता है उनमें वे थोड़ी हैं हम ज्यादा हैं,

माॅं त्याग की बोली में समर्पण का उन्नत स्वर है,
माॅं प्रतिष्ठा के छंद-शास्त्र में प्रेम का शुभ अक्षर हैं ।।


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8 MAR 2021 AT 23:55

TRULY BLESSED..!!!

(Read the caption)

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29 JAN 2021 AT 18:30

SEPARATION
(read the caption)

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23 DEC 2020 AT 18:25

There were the days
when I m litreally doing nothing
& counting my sins while
sitting inside my warm comfy blanket

O lord forgive me....!! 🙏

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1 DEC 2020 AT 14:19

My days & nights are getting heavy,
heavier & heaviest,
Still I m managing the bright smile
to carry everyday.
I m a lone warrior in my life battles.
My tears will worth someday soon,
Only this thought keeps me alive &
will keep dragging me towards more battles.
Amen....!!

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29 NOV 2020 AT 22:54

उच्च-कुलीन परिवार की लड़की बनकर पैदा होना भी,
कांटों पर चलना या
आग से होकर जाने से कम नहीं है
घर परिवार की इज्जत
समाज की चिंता
और इन सबके बीच घुट-घुट कर दम तोड़ते
स्याह होते सपने।
अंततः सबसे खतरनाक स्थिति
भावनाओं का खोखला होना
जीवित व्यक्ति की मृत्यु...!!

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10 OCT 2020 AT 15:40

मैं तुम्हें अब बस
इतना-सा याद करती हुं,
की आंखों से बहा‌ तुम्हें,
आंखों में फिर भरती हूं

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