बचपन हमारा
रूठे जब , सब मनाए ,
मीठी सपने खूब सजाए ,
मेरा बचपन अब याद आए ।
शरारतों से भरी हुई
बचपन वो मेरा ,
गम का कोई स्थान नहीं
बस खुशियों का ही था बसेरा ।
दिन शुरू होते ही
खेल कूद हसी और मस्ती ,
भविष्य से अंजान
बस जिंदगी जीने की ही थी कस्ती ।
जीना चाहु में फिर्से
दुनिया से अनजान वो बचपन मेरा ,
कंधो पे ना कोई बोझ
ना किसी कल का फिकर ,
बस हो मस्ती , हसी और खुशियों का ही जीकर।
बचपन की वो अधूरी याद
याद आती है हर रात ,
कितनी कोमल हुआ करता था
वो बचपन का लम्हा ,
हा प्यारा ही होता है
बचपन हमारा ।
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