परिंदा पंखों की दर्द-ए-निहाँ में बैठा है
और आप पूछते है हाल कैसा है-
ये जो क़लम है अस्ल में आग है....🔥⚡
जिस वक्त चांद को में देखता हूँ
शायद तुम भी देखती होगी
बडी मोहब्बत से फ़िर
नजरों में गुफ़्तगू होती होगी-
सिर्फ उसी का ख्याल क्यों है मेरे ज़ेहन मे....
क्यों मुसलसल क़यास सिर्फ उसी का है....
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*नज़्म*
इश्क़ हसीन ओ ज़मील है। इश्क़ मुख्लिस है। इश्क़ कोल ऐ क़रार है। इश्क़ ज़ुल्फ़ ऐ बहार है। इश्क़ दरिया ऐ करार है।
किसी की महवुबियत कोई बला नहीं
कोई मशगला नही
इश्क़ पौधा है जो दरख़्त होके हलाबत के फल देता है
तलखियत नही
महवुबियत में पंछी भी पंछी का साथ देता है
बिखरे हुए बदन से भी हौसला बढ़ा देता है-
भटके परिंदे लोट रहे है सकूनत की तरफ
जैसे पानी की इक बूंद दरिया की तरफ
ग़ज़लों सा लहज़ा तेरा नज़्मों सी बातें तेरी
किसी को दौर खत्म हुआ मुड़ रही हवा सब तेरी तरफ
यू इक दम से मत गले लगा करो
घूरती है ये दुनिया मेरी तरफ
गाड़ी धुंआ रेल मोटर ऑटो रिकशा सब से दूर
चलो तुम्हे ले चलूं अलग इक मुल्क की तरफ-
हर बार बहक जाता हूं तुम्हारी आंखों को देख कर
यूं आंखों में मयख़ाना लेकर चलना ठीक नही-
गुजरते वक्त रास्ते से हम देखते है उन्हें वो देखते है हमें और दरमियां ट्रक गाड़ियां बगल में भाई की पहरेदारियां
खेर वो अलग बात है की तुम्हारे भाई ज़रा कम बताये होसियारियाँ वरना कर रखी है हमने भी थोड़ी बहुत यारियां
"बस बढ़ाना न तुम दुरियाँ जाना
तुम्हारे रफ़ीक़ में है बहुत खूबियां जाना"
करता हु दोस्तों से तुम्हारी काफ़ी तरफ़दारीयां
खेर वो सुनते नही ये अलग बात है जानियाँ-
सारा ख़ल्क़ है बहुत ख्वाब ऐ औहाम मे
जो कहता है हम ज़िंदगी बहुत जीते है
अरे दोस्त हम मय पीते है इसी ग़म में
की अब हम मय कितनी पीते है
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वो तुम्हारा हाल बहुत पूछेंगे
तुम्हें लगेगा बहुत गहरा मेल है
हां वो तुम्हारे आंसू भी पोछेंगे
लेकिन ये सब सियासी खेल है-