हमारी खुद की कलम है, कैसे रूक जाती...
सरकारी अगर होती...तो कब की बिक जाती ।-
Andhera hai jara dhyaan se dekh,
Woh sitara koi aur nahin khud tu hai...-
एक मेहमान हो यहां पर,
यहां घर नहीं यहां किसी का...
लौट जाना होगा वहीं उसी पते पर।
झगड़ना, लड़ना, प्यार करना,
पर जो भी करो पूरी सिद्दत से...
पछतावा न हो किसी बात का,
छीन लिया जाएगा सब हाथ से...
लौट जाना होगा फिर उसी पते पर।-
कहीं पे पहुंचने के लिए,
हर किसी के दिल से निकालना बहुत जरूरी होता है ।-
महसूस किया है कभी,
"खामोशी" कभी नहीं रुलाती,
थपथपाती है, दिलासा देती है,
मगर प्यार की भावना उद्दंड है...
वो खमोशी का गला घोटकर खुद रोने लगती है।
महसूस किया है मैंने,
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कितने छुपे छुपे रहते हैं
इस जमाने में हम...
कोई पढ़ न ले, कोई देख न ले
इस डर में है हम...
हर किसी की कहानी लिखी है
उनमें जीने वाले भी हम...
अंजान पढ़ने वाले, अंजान कुछ कहने वाले
दीपक को लिए अंधेरे में हम...
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चलते चले जाना, यूहीं बदहवास ।
न मंजिल, न कोई किनारा, मगर है मोड़, है कई पत्थर ।
बहते चले जाना, पानी की तरह ।।
शीतल रहना, दूषित हो जाना ।
न फिकर, न किसी से उम्मीद, न किसी को दोष देना ।
समुंदर में मिल जाना, जैसे मर जाना ।।
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कई कहानियां लिखी है इस शहर में मैंने,
खुद की कहानी की परवाह किए बिना।
कितनो को जिंदा किया, कितनो को मारा मैंने,
बहुत कुछ खो दिया, खुद को पाए बिना ।।
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