उन्होेंने सुकून की तलाश में ,
हर रूह को आजमाई होगी ।
पर जिस रूह ने अपना सुकून क़ुर्बान किया ,
उस तलाश को पूर्ण विराम समझ कर ,
पर उसी रूह को उन्होेंने क़ुर्बान किया ।
अपने जीवन का अधूरा किस्सा समझ कर ।
जब ज़रूरत थी तब मिली नहीं ,
और जब मिली तो ,
तब बोला गया कि ,
काश हमारी मुलाकात पहले हुई होती ,
तो शायद ये दूरी न हुई होती ।
अब उन्हें न सुकून की तलाश है,
और न चाहिए रूह का साथ।
ख़ुद की किस्मत को क़ुर्बान किया ,
समाज के नज़रिए को अपनी किस्मत मान कर ।
पर कोई उस रूह को भी पूछे,
कि बिन सुकून के उसका क्या हाल है ?
समाज के सामने वह मुस्कुराती तो है ,
आँखों में कचड़ा चला गया यह कह कर ।
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