मैं न जाने क्यों उताबला न होकर प्रतीक्षा में रहा
कभी धूप में छाँव की प्रतीक्षा,तो कभी बारिश में
मेघ छटने की प्रतीक्षा,तो कभी दोस्तों की प्रतीक्षा
में,तो कभी प्रेम और प्रेमिका की प्रतिक्षा में,
मैं रहा हूँ सदियों से प्रतीक्षा में ही,
हे! ईश्वर अबकी मुझे बनाना तो ऐसे बनाना
कि न रहूँ किसी की भी प्रतीक्षा में या बनाना मुझे
यूँ कि परस्परता की आवश्यकता ही न हो,
हे! मेरे कठोर दुर्दिनों के ईश्वर,तुम इतने कठोर
कैसे हो सकते हो,क्या? मेरी किलसिति आत्मा
की पुकार नहीं सुनाई देती,
हे! दुर्दिनों के ईश्वर तुम अच्छे नहीं हो,
और यह दुनिया भी अच्छी नहीं है,यहाँ के लोग
भी अच्छे नहीं हैं।-
Hemendra Singh
(Hemendra Singh)
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15 SEP 2022 AT 2:23