एक मतलब तक अच्छाई चाहता हूँ..
मैं..
वरना बेमतलब की...
बुराइयां तो बेशूमार दौलत है मेरी....-
भागते फिरते है लोग हक़ीक़त से...
उनके लिए...
जो सवेरे तक याद नही रहते है
ख़्वाब...🖤-
अब तो सिर्फ मेरे ऐब ...
नाचते फिर रहे है सड़कों पे....
जो नेकियां थी मेरी ....
उन्हें दरिया ले डूबा...-
शुक्रगुज़ार हूँ मैं आईने का....
मुझे ख़ुद से जो मिला दिया....
वरना शहर की हर दीवार से....
ख़ुद को लाज़वाब ही सुना था....
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सुनो...
अबकी बार वो आए तो ....
अपने पास बैठाना ....
बता देना सब कुछ...
जो बुरा हो मेरे बारे...
ख़ैर...
मालूम उसे भी है ...
की मशाल जलाने पे...
दीया बुझाना होता है...
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हुआ कुछ यूं उस रात...
कुछ वादे पूराने तोड़े गए....
नई कसमें दे कर ....
जाने को बोला गया....
रास्ता मेरा रोक कर....
मग़र फ़िर भी
मेरी सरहदें तो ...
तेरी ज़ुबान थी....
फ़िर जंग तूने भी छेड़ दी...
ख़ामोश रहकर....
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मयख़ाने में छोड़ आया हूँ ...
ख़ुद को...
कभी तुम मिले थे जिससें...
वो आदमी अच्छा था....-
गुनाहगार नही थे...
मग़र जिम्मेदार ठहराये गए...
यहाँ कुछ कन्धों को..
सज़ा मिली है ...
उन्होंने ताउम्र ज़नाज़े उठायें...
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कभी - कभी इबादत ख़ुदा की ...
यूं भी की है ...
निकला तो मस्ज़िद को ....
मग़र शाम उसकी गली में की ....-
वक़्त वो भी था...
के मेरे हर हिस्से में तू था...
अब वक़्त ये भी है कि...
मेरे क़िस्सों तक में तू नही...
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