HEMANT TANWAR   (हेमन्त तंवर)
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Joined 9 April 2019


Joined 9 April 2019
29 MAY 2022 AT 23:20

घूंघट की ओट से झांकती है नजरे,
नज़ारे सारे ये धुंधले से है,
अरे नहीं नहीं नज़ारे धुंधले नहीं,
गौर से देखो यहां ज़रा यहां,
यहां तो घूंघट का नज़रिया ही धुंधला है।

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24 JUL 2021 AT 13:31

तुम्हारे तरकश में ये तीर आए कैसे,
बिन घाव घायल ये कर जाए कैसे,
अदाएं है तुम्हारी शातिर से कातिल जैसी,
गुजरे सामने से तो खुद को बचाए कैसे,
कमबख्त तूने दिए दर्द तो सुकून मिलता है,
अब इन जख्मों पर मरहम भी लगाए तो कैसे।


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18 JUL 2021 AT 13:20

हम आगे बड़ गए सोच कर कि पढ़ना है
न फिर हम कभी ठीक से पढ़ पाए
न फिर हम किसी से मुहब्ब्त कर पाए,

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17 JUL 2021 AT 20:40

अगर हो कोई सिकवा तो रुखसत हो जाना
चाहे कोई बात हो बस कह कर लौट जाना,
हमें फिर से तुम इस तरह यूं मना मत लेना,
जब कभी भी मिलो फिर से मुस्कुराना मत देना।

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25 JUN 2021 AT 21:15

बेशक चाहे मुझे सजा-ए-मौत दे देना,
पहले कोई सच को जुर्म तो साबित करो,
बगावत की है हमने! चाहे जुबां काट दो,
ये स्याही इश्क है, मुझे इस से जुदा न करो।

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22 JUN 2021 AT 0:45

मैं कहां काटों से गुलाब छीन कर ला पाऊंगा,
इक फकीर हूं मैं, खाली हाथ ही तो आऊंगा,
हर बार क्यों अनसुना कर देते हो मुद्दे की बात,
ये तो बताओ मैं किस दिन तुमसे मिल पाऊंगा।

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16 JUN 2021 AT 16:21

तेरी मौत का इल्जाम मेरे सिर लगाया गया होगा,
मेरे मरने का गम शायद तू सह नहीं पाया होगा,
और ये श्मशान में मुझे तेरी खुशबू क्यों आ रही है?
लगता है तुझे भी मेरे आस पास जलाया गया होगा।

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3 JUN 2021 AT 21:10

कौन करेगा इंतजार इस मौसम का,
जो समेटे हुए सुकून का खज़ाना है,
कहीं से खोज लाओ कोई नुस्खा यारों,
पहली बारिश की खुशबू का इत्र बनाना है।

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23 MAY 2021 AT 21:50

हर रात की बैचेनी
सुबह उठते ही धुंधला जाती है
जैसे सूरज की किरणों में
नहा कर बड़े जोश में
बड़ चलते है एक दौड़ में
रोज अपने ख्वाबों को पूरा करने
फिर रात की मायूसी
फिर होता नया सवेरा
जो होने नही देता है कभी
इस मन में कभी अंधेरा।

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7 MAY 2021 AT 22:30

न निशान, न कोई ज़ख्म दिखाई दे,
न मरहम, न ही कोई दवाई है,
रकीब से भी वो कहां बुझ पाई है,
जो आग तूने इस सीने में लगाई है।

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