घूंघट की ओट से झांकती है नजरे,
नज़ारे सारे ये धुंधले से है,
अरे नहीं नहीं नज़ारे धुंधले नहीं,
गौर से देखो यहां ज़रा यहां,
यहां तो घूंघट का नज़रिया ही धुंधला है।-
तुम्हारे तरकश में ये तीर आए कैसे,
बिन घाव घायल ये कर जाए कैसे,
अदाएं है तुम्हारी शातिर से कातिल जैसी,
गुजरे सामने से तो खुद को बचाए कैसे,
कमबख्त तूने दिए दर्द तो सुकून मिलता है,
अब इन जख्मों पर मरहम भी लगाए तो कैसे।
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हम आगे बड़ गए सोच कर कि पढ़ना है
न फिर हम कभी ठीक से पढ़ पाए
न फिर हम किसी से मुहब्ब्त कर पाए,
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अगर हो कोई सिकवा तो रुखसत हो जाना
चाहे कोई बात हो बस कह कर लौट जाना,
हमें फिर से तुम इस तरह यूं मना मत लेना,
जब कभी भी मिलो फिर से मुस्कुराना मत देना।-
बेशक चाहे मुझे सजा-ए-मौत दे देना,
पहले कोई सच को जुर्म तो साबित करो,
बगावत की है हमने! चाहे जुबां काट दो,
ये स्याही इश्क है, मुझे इस से जुदा न करो।-
मैं कहां काटों से गुलाब छीन कर ला पाऊंगा,
इक फकीर हूं मैं, खाली हाथ ही तो आऊंगा,
हर बार क्यों अनसुना कर देते हो मुद्दे की बात,
ये तो बताओ मैं किस दिन तुमसे मिल पाऊंगा।-
तेरी मौत का इल्जाम मेरे सिर लगाया गया होगा,
मेरे मरने का गम शायद तू सह नहीं पाया होगा,
और ये श्मशान में मुझे तेरी खुशबू क्यों आ रही है?
लगता है तुझे भी मेरे आस पास जलाया गया होगा।-
कौन करेगा इंतजार इस मौसम का,
जो समेटे हुए सुकून का खज़ाना है,
कहीं से खोज लाओ कोई नुस्खा यारों,
पहली बारिश की खुशबू का इत्र बनाना है।-
हर रात की बैचेनी
सुबह उठते ही धुंधला जाती है
जैसे सूरज की किरणों में
नहा कर बड़े जोश में
बड़ चलते है एक दौड़ में
रोज अपने ख्वाबों को पूरा करने
फिर रात की मायूसी
फिर होता नया सवेरा
जो होने नही देता है कभी
इस मन में कभी अंधेरा।-
न निशान, न कोई ज़ख्म दिखाई दे,
न मरहम, न ही कोई दवाई है,
रकीब से भी वो कहां बुझ पाई है,
जो आग तूने इस सीने में लगाई है।-