केदारनाथ जाकर हम जल चढ़ाएंगे
बनारस में एक नई दुनिया बसाएंगे
तुम हां तो करो प्रिय
जल,दूध,दही,घी और शहद से अभिषेक कराएंगे
अष्टगंध का तिलक लगाकर
बेलपत्र, धतूरा, अकुआ चढ़ाएंगे
भांग, धूप, और खीर का भोग लगाकर
हम तुम मिल मेरे भोले को सजाएंगे
हर दुख,हर गम,हर पीड़ा से परे होकर
हम तुम रुद्राष्टकम गायेंगे।
हम तुम मिल भोले बाबा को सजाएंगे।-
दर्द तो भक्तों को भी हुआ इस शतक से
लेकिन हर बात बतलाएं कैसे?
पॉकेट मनी ही 200 हैं
कुर्ता खरीदें तो पेट्रोल भरवाएं कैसें?
और अब तो वो भी प्यार करने लगी हैं
उसे हर रोज गाड़ी से घुमाए कैसे?
सुना हैं भर्तियां आने वाली हैं
इतना धैर्य लाये कैसे?
रोटी, कपड़ा, मकान के साथ नौकरी भी जरूरी हैं
किताबें पढ़े तो कुछ कमाएं कैसे?
पॉकेट मनी ही 200 हैं
फॉर्म भरे तो पेपर देने जाएं कैसे?
कई वर्षो से बस वो रट रहे हैं,
उनके अंदर नैतिकता आए कैसे?
अब तुम ही बताओ दामू,
काले कारनामों से विश्वगुरु बना जाए कैसे?
डिजिटल डिजिटल कहने से
गरीबी दूर भगाएं कैसे?-
फ़िर वही दिलकश दिसंबर है
मोहब्बत भी करनी है
तुमसे ही करनी है
और बेमिसाल करनी है।-
रोज के दस पन्ने,
बेरोजगारी का आलम,
नौकरी की चिंता,
यारो की यारी,
चाय के घूंट,
तुम्हारी यादें,
दिल की दलीलें,
घरवालों के ताने,
शायरी का शौक,
यही जीवन है मेरे दोस्त,
-
ज्यादा कुछ नहीं बस एक दिन के लिए किसान बनकर देखो।
बस एक दिन उसके कंधे पर हाथ रख उसकी तकलीफे पूछो।
क्या जरूरी है और क्या नहीं ये चर्चा उससे भी करके देखो।
उससे भी एक बार अध्यादेशों के बारे में पूछो।
लोकतंत्र का अर्थ यही होता है ना - जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का शासन।
यार कभी ये पालन करके भी देखो।-
मै ढलता हुआ सूरज हूं,
तुम बनारस का घाट प्रिय।
हम तुम जब मिल जाए
हो मोहब्बत की शाम प्रिय।-
″ वो भी क्या दिन थे″ से
″ये भी क्या दिन है″ कहना ज्यादा सार्थक है।
-
इस बारिश के मौसम में एक नई प्रेम कहानी बनाएंगे।
तुम धान लगाना, हम गाय चरायेंगे-