Hemant Kumar Maurya  
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Joined 17 September 2019


Joined 17 September 2019
26 DEC 2021 AT 14:56

चरमराकर वृक्ष से कोई शाख जैसे हो गिरी
कृष्ण से होकर विमुख जैसे चली हो बाँसुरी
और जैसे टूट कर नभ से सितारा चल दिया
आज हमसे रूठ कर क्यों मन हमारा चल दिया

चल दिया उस मार्ग पर जिसका नहीं कोई अन्त है
पूर्व में यह था अजामिल किन्तु आज सन्त है
सन्त यह क्यों छोड़कर घर-बार सारा चल दिया
आज हमसे रूठ कर क्यों मन हमारा चल दिया

चाह ऐसी थी हमारी कि जता पाये नहीं हम
बात ऐसी थी हृदय में कि बता पाये नहीं हम
संकेत था नयनों का क्या, क्यों नीर खारा चल दिया
आज हमसे रूठ कर क्यों मन हमारा चल दिया

हैं अधर भी मौन जैसे शब्द सीमित हो गये हों
मार्ग में चहुँओर ज्यों कण्टक असीमित हो गए हों
हो के द्रण इन कण्टकों पर तन हमारा चल दिया
आज हमसे रूठ कर क्यों मन हमारा चल दिया ?

- पवन दीक्षित (नि:शब्द)

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20 OCT 2021 AT 16:17

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर,
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’
और न कुछ मैं कहने पाया -
मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

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5 SEP 2021 AT 13:02

हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूँ

निगाह-ओ-दिल की यही आख़री तमन्ना है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम करता चलूँ

उन्हे ये ज़िद के मुझे देखकर किसी को ना देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ

ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूँ

#शादाब लाहौरी

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3 SEP 2021 AT 10:31

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया

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2 SEP 2021 AT 22:26

अश्क़ ज़ाया हो रहे थे, देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना, मैं वहा रोता न था

सिर्फ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिए
मैं तो वो हूँ, जो किसी की मौत पर रोता न था

मुझ पर कितने एहसान है गुज़रे, पर उन आँखों को क्या
मेरा दुःख ये है, के मेरा हमसफ़र रोता न था

मैंने उसके वस्ल में भी हिज्र कटा है कहीं,
वो मेरे कंधे पे रख लेता था सर, रोता न था

प्यार तो पहले भी उससे था, मगर इतना नहीं
तब में उसको छू तो लेता था, मगर रोता न था

गिरियो ज़ारी को भी एक खास मौसम चाहिए,
मेरी आँखें देख लो, मै वक़्त पर रोता न था

Tehzeeb Hafi

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1 SEP 2021 AT 21:12

चाँद का चश्मा लगाकर मुस्कुराती शब तुझे
कौन समझाकर गया है इश्क़ का मतलब तुझे

-पंकज पलाश

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1 SEP 2021 AT 20:56

बेशक सब दर-दीवारों पर नाम हमारा लिखते हों
बेशक सबको हर जगह पर अक्स हमारे दिखते हों
बेशक सबको इश्क हुआ हो हालत हो दीवानों सी
बेशक सबकी खूब तमन्ना हो आशिक परवानो सी
लेकिन मेरे दिल में कोई ठौर नहीं पा सकता है
प्रिय, इस जीवन में अब कोई और नहीं आ सकता है
___________________©® समीक्षा सिंह

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27 AUG 2021 AT 12:35


मंज़िलों पे आ के लुटते, हैं दिलों के कारवाँ
कश्तियाँ साहिल पे अक्सर, डूबती है प्यार की

मंज़िलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह
जब कदम ही साथ ना दे, तो मुसाफिर क्या करे
यूं तो है हमदर्द भी और हमसफ़र भी है मेरा
बढ़ के कोई हाथ ना दे, दिल भला फिर क्या करे

डूबने वाले को तिनके का सहारा ही बहुत
दिल बहल जाए फ़क़त इतना इशारा ही बहुत
इतने पर भी आसमां वाला गिरा दे बिजलियाँ
कोई बतला दे ज़रा ये डूबता फिर क्या करे
मंजिलें अपनी जगह...

प्यार करना जुर्म है तो, जुर्म हमसे हो गया
काबिल-ए-माफी हुआ, करते नहीं ऐसे गुनाह
तंगदिल है ये जहां और संगदिल मेरा सनम
क्या करे जोश-ए-जुनूं और हौसला फिर क्या करे
मंज़िलें अपनी जगह...

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19 AUG 2021 AT 23:11

एक प्रश्न 🙂
अजी इस आशिकी में तुम ‘मेरा ईमान लोगे क्या ?
‘मेरी फितरत,‘मेरी आदत, ‘मेरी पहचान लोगे क्या ?
मुझे मालूम है तुमको नहीं मुझ सा मिला कोई,
मुझे अपना समझते हो तो’ मेरी जान लोगे क्या ?
_____________________________समीक्षा सिंह

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15 JUL 2021 AT 8:53

एक ग़ज़ल आप सबके लिए ....

नहीं जिन्दगी भर ख़सारा मिलेगा
हमें भी कभी तो हमारा मिलेगा

कि तूफां कहाँ रोक पाया किसी को
चले हैं अगर तो किनारा मिलेगा

जहाँ से बड़ी और है इक अदालत
वहाँ हर किसी को सहारा मिलेगा

जिसे आशिकी का तजुरबा बहुत है
वही इस जहाँ में बिचारा मिलेगा

हमें तो पता है हमारा मुकद्दर
ख़ुशी हो या गम ढेर सारा मिलेगा
_______________समीक्षा सिंह

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