वो असल में कैसी है बता पाऊं, दरअसल ये मुश्किल है
उसकी तारीफ में एक ग़ज़ल, ये एक ग़ज़ल में मुश्किल है
मैं देखूं और ना चाहूं उसे, खयाल अच्छा है एक बार के लिए
वो आंख बंद होने पर भी दिखता है मुसलसल, ये मुश्किल है
वो हकीकत ना होकर भी मेरी हकीकत से राब्ते में है
मैं उसे खयालों में भी ना लाऊं, आजकल ये मुश्किल है
मैं ख्वाबों में खोजता हूं, कहानियों में पढ़ता हूं किरदार उसका
मुझे फिल्मों सी मोहब्बत की आरजू है जो असल में मुश्किल है
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कुछ नहीं था जब उसको पहली दफा देखा
फिर ना जाने उसमें ऐसा क्या देखा
ये दोस्ती, दिल्लगी थी या आशिकी मालूम नहीं
पर मैने जब भी उसको देखा कुछ नया देखा
एक वक्त था मैं तेज चलता था, वो टोकती थी
उसके कदम मिले तो चल के आहिस्ता देखा
लोग कहते हैं मैंने दुनिया नहीं देखी
जो मैंने देखा वो दुनिया ने कहां देखा
मैं उससे मिलूंगा कहीं उम्र के किसी मोड़ पे
वो ज़हन पे जोर देगी "इस शख़्स को मैंने कहां देखा"-
इस हाल ही बसर करता रहा अगर,
जाने फिर उस हाल कब हो पाऊंगा
लोग भूल जाएंगे कितना अच्छा था,
एक रोज मैं इतना बे-अदब हो जाऊंगा-
एक शख्स को दुनिया मानने में मसला ये है
जां निकल जाती है दुनिया से हिजरत में।-
तुम पर शायरी करके ऐसा लगता है
कोई तो है जो सिर्फ मेरा लगता है
महफिलों में जो मिला अपना ना था
खालीपन मुझे ज्यादा अपना लगता है
यूं तो चांद को भी दुख है किसी बात का
पूरा होकर भी कभी-कभी आधा लगता है
मेरी मुस्कुराहटों का वजूद ही तुमसे है
तुम खुश हो बस यही सोचकर अच्छा है
इन बातों में किसी तरह का दावा नहीं
दावा भी एक तरह का वादा लगता है
शायरी पे ऐतबार है तुम्हें ? तुम भोली हो
मुझे तो हर अच्छा शायर झूठा लगता है-
कुछ घरौंदों को ना सजाना ही सही
कुछ रेत का यूं बिखर जाना ही सही
गम नहीं तेरे दिल में घर ना कर सका
मेरा उस सराय में आना - जाना ही सही
हर काम होंश-ओ-हवाश में नहीं किए जाते
अब मैं जो कर रहा हूं मजनूनाना ही सही
तेरी दस्तरस से आजाद होने का खयाल था
इस खयाल का खयाल रह जाना ही सही
मुझसे खुल के हंसने के वादे ना मांग
मेरा, तेरी महफिलों में मुस्कुराना ही सही
सबकी कहानियों पे फिल्में नहीं बनती 'गौतम'
रहने दो कोई किरदार अनजाना ही सही-
थोड़ा पास आओ तो मुझे कुछ कहना है
सुनकर दूर ना जाओ तो मुझे कुछ कहना है
तुम दरिया हो आगे बढ़ना तुम्हारी फितरत है
पर थोड़ा ठहर जाओ तो मुझे कुछ कहना है
यूं तो शब - ए - हिज्र गुजारी है मैंने चुप रहकर
तुम सुब्ह-ए-सुखन लाओ तो मुझे कुछ कहना है
ये पल दो पल की मोहब्बत से मन उकता गया है
गर ता - उम्र साथ निभाओ तो मुझे कुछ कहना है
क्या हुआ? तुम मिले मुस्कुराए और चल दिए
मैंने बस इतना कहा था "मुझे कुछ कहना है"-
सारी उम्र गर मोहब्बत में बिता दूंगा
तो अपनी जिंदगी को फकत एक दगा दूंगा
वो एक ख़्वाब जो मेरी आंखे देखते थकती ना थी
मैं किसी रोज उसे अपने गांव की नदी में बहा दूंगा
कुछ नहीं रखा मोहब्बत में, मेरी मानो, मैंने करके देखी है
मैं अपनी मोहब्बत को भी मोहब्बत से दूर रहने की सलाह दूंगा-
कोई बस तेरे हाथों की लकीरों तक नहीं जाती
नहीं तो हम भी तेरे ही शहर-ए-मुकद्दर में होते-
जैसे कोई पुरखों की कमाई ले जाता है
वो आंखो से ओझल हो तो बिनाई ले जाता है
उसका अंदाज जूदा है ज़हन में बस जाने का
अपनी तस्वीर देकर सारी तन्हाई ले जाता है
मैं उसका कैदी ही ठीक हूं उसकी दस्तरस में
जेलर बेड़ियों के साथ मेरी रिहाई ले जाता है
सालाना मेरी दो मुस्कुराहटें सच्ची होती है
एक किस्तों में बटती है, एक जुलाई ले जाता है
जिंदगी जैसे ही कुछ सीखा-पढ़ा के भेजती है
इम्तिहान का डर सारी रटी - रटाई ले जाता है
रेत का घरौंदा चाहे कितनी बार बना लो 'गौतम'
समंदर फिर आकर सारी की - कराई ले जाता है-