एक आदमीं हर आदमीं की कथा है लेकिन हर बार हम ये सोच कर चलते हैं ये उन सब की बात है मेरी बात अलग है । कोई ऐसा न होगा जो जन्मा न हो और कोई ऐसा न होगा जो कभी मरेगा नहीं जो भी घटनाएं उन सभी के साथ हूई निश्चित ही सभी के साथ होंगी समय अलग-अलग होगा लेकिन नियती समान ।
मात्र एक विचार ने हमें 1000 साल की गुलामी में ढकेल दिया "अतिथि देवो भव " तैत्तिरीयोपनिषद का यह छंद भयावह है क्यूँ की यह सोचकर हम किसी भी अंजान पर विश्वास कर लेते है की मेहमान भगवान का रूप होता है हमें अग्रेंजो ने आते ही बंदूक नहीं दिखाई हमने ही पहले स्वागत किया बंदन गीत गाए उन्हें एहसास कराया की उनका आना हमारे लिए अहोभाग्य है फिर हमने दोस्ती की व्यापार का अवसर दिया अपनी खूबियाँ खामियां गीनवाइ भला इतना कुछ जानने के बाद किसी का मन क्यूँ न डोल जाए चाहें पुर्तगाली हो डच फ्रांसिस हो सबने हम पर राज किया क्यूँ की हमने मौका दिया । आज भी कश्मीर को लेकर दूसरे देश हमें ज्ञान देते हैं क्यूंकि उन्हे कमजोर नस पता है ब्रिटेन की महारानी मरती है इस देश का झंडा एक दिन के झुका दिया जाता क्यूँ की जहन से वो गुलामी अभी पुरी तरह निकलीं नहीं और शायद हो सकता है हम बहुत ही जल्द दुबारा गुलाम हो जाएं क्यूंकि हमें उसी में आनंद मिलता है ।
अगर तुम अपेक्षा ही छोड़ दो, तो तुम्हें क्या कोई दुख दे सकेगा? इसे बहुत सोचना ध्यान करना अगर तुम अपेक्षा छोड़ दो, कोई मांग न रहे क्योंकि तुम जाग गए कि मिलना किसी से कुछ भी नहीं है तो तुम अचानक पाओगे तुम्हारे जीवन से दुख विसर्जित हो गया। अब कोई दुख नहीं देता। सुख न मांगो तो कोई दुख नहीं देता। ~ चन्द्र मोहन जैन (ओशो)
मैं नहीं जानता मैं कितना अच्छा या बुरा हूँ ये फैसला मैं आप पर छोड़ता हूँ जो मैं जानता हूँ वो ये है की खुद को खुश करने के लिए किसी को दुःख नहीं दिया । बस इतना सा फर्क है प्रेम में और अहंकार में प्रेम जब कुछ देता है तो आनंदित होता हर्षित होता है और अहंकार जब कुछ लेता है तब हर्षित होता है चाहे वो मर्यादा हो इज्जत हो या मान सम्मान हो ।